अमेरिका में लेप्टोस्पाइरोसिस पर रिसर्च करेंगी डॉ. रीतिका चौरसिया
भारत में बाढ़ के दौरान फैलने वाले लेप्टोस्पाइरोसिस रोग की रोकथाम व टीकाकरण के क्षेत्र में शोध के लिए शहर की बेटी डॉ. रीतिका चौरसिया अमेरिका जाएंगी। अमेरिका का येल यूनिवर्सिटी ने उनका पोस्ट डॉक्टोराल एसोसिएट पर उनका चयन किया है। रीतिका ने इसी विषय पर जनवरी महीने में अपनी पीएचडी पूरी की है।
रामजानकी नगर निवासी पूर्वांचल बैंक के रिटायर प्रबंधक आरआरपी चौरसिया की पुत्री रीतिका ने शहर के एडी गर्ल्स इंटर कॉलेज से 12 वीं तक की पढ़ाई की। डीडीयू से 2006 में बीएससी करने के बाद उन्होंने छत्रपति साहू जी महराज विवि कानपुर से एमएससी की। अन्ना यूनिवर्सिटी चेन्नई से बॉयोटेक्नोलॉजी से एमटेक करने के बाद उन्होंने लेप्टोस्पाइरोसिस को शोध के विषय के रूप में चुना। सीडीआरआई लखनऊ व जेएनयू नई से इसी साल जनवरी में उन्होंने पीएचडी की उपाधि हासिल की है।
रीतिका ने बताया कि रिसर्च के दौरान ही उन्होंने इस रोग के बारे में टीकाकरण व रोकथाम के उपाय तलाशने पर रिसर्च करने का इरादा किया था। अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी से पोस्ट डॉक्टोरल एसोसिएट पद के लिए ऑनलाइन आवेदन किया था। अमेरिकी विवि ने उनका चयन कर लिया है। वह सात फरवरी को यहां से अमेरिका के लिए प्रस्थान करेंगी।
डॉ. रीतिका ने बताया कि लेप्टोस्पाइरोसिस एक उभरता हुआ जूनॉटिकल नेग्लेक्डेट ट्रॉपिकल रोग है, जो लेप्टोस्पाइरा नामक बैक्टीरिया से होता है। यह बैक्टीरिया चूहे के यूरिन से फैलता है। वर्ष-2015 में मुंबई में बाढ़ के बाद बड़ी संख्या में इसके रोगी पाए गए थे। बीते वर्ष केरल में भी बाढ़ के दौरान बड़ी संख्या में इस रोग के मरीज मिले। इस रोग के मरीजों में 5 से दस फीसदी रोगियों की ही मौत होगी है मगर इस बीमारी का पता देर से चलता है।
इसके लक्षण मलेरिया, डेंगू आदि से मिलते जुलते हैं इसलिए पहचान होने में देर हो जाती है। अभी तक इसके टीकाकरण के इंतजाम नहीं हैं। रिसर्च के दौरान रीतिका ने बैक्टीरिया के प्रोटीन का अध्ययन किया है। उसका असर रोकने के कंप्यूटिंग मेथड पर भी काफी काम किया है। अमेरिकन विवि की लैब में इसके टीके इजाद करने पर काम करेंगी।