कभी रूस से कर्ज से लेकर उद्योग और कृषि का विकास करता था भारत, आज रूस को ही देने लगा लोन
नई दिल्ली:भारत ने रूस के संसाधन संपन्न सुदूरी पूर्वी क्षेत्र (फार ईस्ट रीजन) के विकास के लिए 1 अरब डॉलर का कर्ज देने का ऐलान किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 20वें भारत-रूस वार्षिक सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बातचीत के लिए रूस गए थे। उन्होंने वहां ईस्टर्न इकनॉमिक फोरम में भी हिस्सा लिया। इसमें आश्चर्य की बात क्या है?
पांचवें ईस्टर्न इक्नॉमिक फोरम (ईईएफ) को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत ईस्टर्न इक्नॉमिक फोरम का सक्रिय प्रतिभागी है। ईईएफ-2019 में भारत ने पांच अरब डॉलर (करीब 35 हजार करोड़ रुपये) के 50 समझौते किए हैं। भारतीय कंपनियों ने रूस तेल और गैस सेक्टर में निवेश किया है और रूसी कंपनियों ने ऊर्जा, रक्षा और तकनीक हस्तांतरण के क्षेत्र में निवेश किया है।
पीएम मोदी ने कहा कि भारत और रूस के बीच मित्रता, यहां के लोगों और नजदीकी व्यापारिक रिश्तों के दम पर है। रूस के सुदूर पूर्व से भारत का पुराना रिश्ता है। भारत व्लादिवोस्तोक में कांसुलेट खोलने वाला पहला देश था। प्रधानमंत्री मोदी ने रूस के सुदूर पूर्व के कल्याण के लिए पुतिन के नजरिए का स्वागत करते हुए कहा कि रूस ने इस क्षेत्र में भारत के लिए निवेश के अवसर खोल दिए हैं।
वहीं, राष्ट्रपति पुतिन ने अपने भाषण में कहा कि रूस के सुदूर पूर्व क्षेत्र के विकास की घोषणा 21वीं सदी के लिए राष्ट्रीय प्राथमिकता है। इस समग्र रुख के साथ अर्थव्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल, संस्कृति और संचार के क्षेत्र में सुधार किया जाएगा। पीएम मोदी ने रूस के सुदूर पूर्व की प्रगति में भी भारतीयों से अपना सक्रिय योगदान देने की अपील की।
सुदूर पूर्व में मौसम है बेहद दुरुह:-
रूस के सुदूर पूर्व में मौसम बेहद दुरुह है। यहां नौ महीने ठंड का मौसम रहा है। पूरे साल पूरा क्षेत्र बर्फ से ढंका रहता है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक यह क्षेत्र 6,952,555 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां जीवनयापन बेहद कठिन होने के चलते यहां की आबादी महज 81 लाख ही है।
अमेरिकी प्रतिबंधों का असर नहीं:-
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि अमेरिका ने रूस पर जो प्रतिबंध लगाए हैं भारत पर कोई असर नहीं है। भारत रूस के साथ ऊर्जा और रक्षा जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में अपना सहयोग बढ़ा रहा है। ये प्रतिबंध दोनों ही भारत और रूस दोनों के ही लिए बाधक नहीं हैं। भारतीय फर्मो ने रूसी तेल व गैस क्षेत्र में सात अरब डॉलर का निवेश किया है। भारत इस क्षेत्र में रूस के साथ वर्ष 2001 से है, जब ओएनजीसी विदेश ने रूस के सुदूर पूर्व क्षेत्र में साखालिन-1 तेल व गैस फील्ड में बीस फीसद की हिस्सेदारी हासिल की थी। ओवीएल ने बाद में इम्पीरियल एनर्जी को खरीद लिया जो साइबेरिया में स्थित है।
उन्होंने कहा कि रूस को एक अरब डॉलर कर्ज देना भारत की ओर से किसी अन्य देश में किसी क्षेत्र के लिए विशेष रूप से ऋण देने का अनूठा मामला है। मेजबान राष्ट्रपति पुतिन की मौजूदगी में मोदी ने कहा कि भारत यह कर्ज ‘सुदूर पूर्व’ के विकास के लिए दे रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने रूस के पेट्रोलियम, गैस और अन्य खनिजों से परिपूर्ण ‘सुदूर पूर्व क्षेत्र’ के लिए भारत सरकार की ‘एक्ट फार ईस्ट’ नीति को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा, ‘मुझे पूरी उम्मीद है कि इस कदम से विकास की आर्थिक कूटनीति को नई ऊर्जा मिलेगी। इससे दोनों मित्र देशों के आपसी संबंध और मजबूत होंगे।’ उन्होंने सहायता राशि को क्षेत्र में भारत का ‘लांचिंग पैड’ बताया, जहां वह खासा सक्रिय है।
विकास के लिए मदद का हाथ बढ़ाना भारत के लिए कोई नई बात नहीं है। विदेशी सरकारों और खासकर भारत के पड़ोसियों के विदेश मंत्रालयों के बजट दूसरे देशों से मिलने वाली सहायता राशि पर ही निर्भर करते हैं। हकीकत में भारत द्वारा विदेशों को दिया जाने वाला कर्ज पिछले वर्षों में ढाई गुना से भी ज्यादा हो गया। भारत ने 2013-14 में विदेशों को 11 अरब डॉलर कर्ज दिए थो जो पिछले वित्त वर्ष 2018-19 में बढ़कर 28 अरब डॉलर हो गए। हालांकि, भारत ज्यादातर कर्ज एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों को देता है जो आर्थिक रूप से रूस के मुकाबले कमजोर हैं।
भारत भी कभी अंतरराष्ट्रीय मदद लेता था:-
भारत अपने उद्योग और कृषि जगत के विकास के लिए लंबे समय तक अंतरराष्ट्रीय मदद पर निर्भर रहा था। 1956 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बहुत कम हो गया था, तब अपनी दूसरी पंचवर्षीय योजना की फंडिंग के लिए विदेशों का मुंह देखना पड़ा था। 1990 के दशक में उदारवादी बाजार व्यवस्था अपनाने के बाद भारत में विदेशी निवेश आने लगा तो विदेशों से सहायता लेने का सिलिसला टूटा। वह दौर सोवियत संघ के टूटने का था। रूस की ओर से विदेशों को दिए जाने वाले कर्ज का बड़ा हिस्सेदार भारत के हिस्से आता रहा। तब सोवियंत संघ ने विदेशी मदद को समर्पित रकम का एक चौथाई हिस्सा सिर्फ विकासशील देशों को देता था।
बदले हालात:-
रूस की अर्थव्यवस्था 2014 से ही मुश्किलों का सामना कर रही है। क्रीमिया पर रूस के कब्जे के कारण लगी अंतरराष्ट्रीय पाबंदियों और पांच वर्ष पहले कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट ने उसकी रीढ़ तोड़ दी। इन पांच वर्षों में रूस की इकॉनमी महज 2% की दर से बढ़ी। इस कारण रूसी वर्करों की आमदनी घटी और टैक्स बढ़ा। इस वर्ष मॉस्को में हुए विरोध प्रदर्शन का एक कारण यह भी था।
कर्ज कूटनीति (लोन डिप्लोमसी)
सॉफ्ट लोन आस-पड़ोस में राजनीतिक दबदबा कायम रखने का एक महत्वपूर्ण राजनियक जरिया रहा है। इससे पड़ोसी देशों, खासकर अफ्रीका में चीन की बढ़ती प्रभुता को भी चुनौती मिलती है। कई जरूरतमंद देशों को चीन के कर्ज के जाल में फंसलने के बचाने के लिए भी भारत को कर्ज देना पड़ता है ताकि वह बेल्ड ऐंड रोड की आड़ में चीन का चालबाजी को मात दे सके। विदेशी सहायता राशि में वृद्धि या कमी से तत्कालीन सियासी माहौल को भी भांपा जा सकता है। मसलन, नेपाल को भारत से मिलने वाली सहायता राशि में कोई वृद्धि नहीं हुई जबकि मालदीव में पिछले वर्ष सरकार बदलते ही भारत ने उसे दी जा रही मदद बढ़ा दी।
#Putin: We are always delighted to welcome to @Russia a big friend of our country, Prime Minister of India @NarendraModi. His official visit has been timed to coincide with the @en_forumvostok, where Mr Modi and I will address a plenary meeting tomorrow
🔹https://t.co/JvhAXSKRSP pic.twitter.com/d2DjHXmAk8— Russian Embassy in USA 🇷🇺 (@RusEmbUSA) September 4, 2019