क्या भारत ने कश्मीर मामले में यूएन प्रस्तावों को ताक पर रखा?
भारत की ओर से जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाए जाने की पाकिस्तान ने निंदा की है.
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की ओर से जारी किए गए बयान में कहा गया है कि भारत सरकार अपने एकतरफ़ा फ़ैसले से इस विवादित भूमि की स्थिति में बदलाव नहीं कर सकती और यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का उल्लंघन है.
Prime Minister said that India’s announcement regarding the status of the Indian Occupied Jammu & Kashmir was in clear violation of the United Nations Security Council (UNSC) resolutions.#StandWithKashmir
(2/3) pic.twitter.com/dsFe8eM4DX— Govt of Pakistan (@GovtofPakistan) August 5, 2019
लेकिन संयुक्त राष्ट्र के वे कौन से प्रस्ताव हैं जिनके उल्लंघन का आरोप पाकिस्तान ने लगाया है?
दरअसल भारत और पाकिस्तान के बीच इस विवादित भू-भाग को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अब तक कई प्रस्ताव आ चुके हैं. लेकिन इसकी शुरुआत साल 1948 से हुई थी.
वर्ष 1947 में क़बाइली आक्रमण के बाद जम्मू कश्मीर के महाराज हरिसिंह ने भारत के साथ विलय की संधि पर हस्ताक्षर किए. भारतीय फौज मदद के लिए पहुंची और वहां उसका पख़्तून क़बाइली लोगों और पाकिस्तानी फौज से संघर्ष हुआ.
इस संघर्ष के बाद राज्य का दो तिहाई हिस्सा भारत के पास रहा. इसमें जम्मू, लद्दाख और कश्मीर घाटी शामिल थे. एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के पास गया.
भारत इस मसले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में लेकर गया जहां साल 1948 में इस पर पहला प्रस्ताव आया.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सूची में यह था- प्रस्ताव नंबर 38. इसके बाद इसी साल प्रस्ताव 39, प्रस्ताव 47 और प्रस्ताव 51 के रूप में तीन प्रस्ताव और आए.
इन प्रस्तावों में क्या कहा गया था, संक्षेप में पढ़िए:
17 जनवरी 1948 को प्रस्ताव 38 में दोनों पक्षों से अपील की गई कि वे हालात को और न बिगड़ने दें, इसके लिए दोनों पक्ष अपनी शक्तियों के अधीन हरसंभव कोशिश करें. साथ ही ये भी कहा गया कि सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष भारत और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों को बुलाएं और अपने मार्गदर्शन में दोनों पक्षों में सीधी बातचीत कराएं.
20 जनवरी 1948 को प्रस्ताव संख्या 39 में सुरक्षा परिषद ने एक तीन सदस्यीय आयोग बनाने का फ़ैसला किया, जिसमें भारत और पाकिस्तान की ओर से एक-एक सदस्य और एक सदस्य दोनों चुने हुए सदस्यों की ओर से नामित किया जाना तय किया गया. इस आयोग को तुरंत मौक़े पर पहुंचकर तथ्यों की जांच करने का आदेश दिया गया.
21 अप्रैल 1948 को प्रस्ताव संख्या 47 में जनमत संग्रह पर सहमति बनी. प्रस्ताव में कहा गया कि भारत और पाकिस्तान दोनों जम्मू-कश्मीर पर नियंत्रण का मुद्दा जनमत संग्रह के स्वतंत्र और निष्पक्ष लोकतांत्रित तरीक़े से तय होना चाहिए. इसके लिए एक शर्त तय की गई थी कि कश्मीर में लड़ने के लिए जो पाकिस्तानी नागरिक या कबायली लोग आए थे, वे वापस चले जाएं.
लेकिन 1950 के दशक में भारत ने ये कहते हुए इससे दूरी बना ली कि पाकिस्तानी सेना पूरी तरह राज्य से नहीं हटी और साथ ही इस भू-भाग के भारतीय राज्य का दर्जा तो वहां हुए चुनाव के साथ ही तय हो गया.
यानी संयुक्त राष्ट्र के उन प्रस्तावों को दोनों पक्षों के बीच आरोप-प्रत्यारोप की वजह से तभी से अमल में नहीं लाया जा सका. सारी बात सेनाओं के वापस जाने और जनमत संग्रह की मांगों पर ही उलझकर रह गई.
तब से पाकिस्तान लगातार जनमत संग्रह की माँग करता रहा है और भारत पर वादे से पीछे हटने का आरोप लगाता है.
फिर 1971 में दोनों देशों की सेनाओं के बीच जंग के बाद साल 1972 में शिमला समझौता अस्तित्व में आया. इसमें सुनिश्चित कर दिया गया कि कश्मीर से जुड़े विवाद पर बातचीत में संयुक्त राष्ट्र सहित किसी तीसरे पक्ष का दखल मंज़ूर नहीं होगा और दोनों देश मिलकर ही इस मसले को सुलझाएंगे.
भारत सरकार ने कहा कि कश्मीर की स्थिति और विवाद के बारे में पहले हुए तमाम समझौते शिमला समझौता होने के बाद बेअसर हो गए हैं. ये भी कहा गया कि कश्मीर मुद्दा अब संयुक्त राष्ट्र के स्तर से हटकर द्विपक्षीय मुद्दे के स्तर पर आ गया है.
कश्मीर मामले पर यूपीए सरकार के समय केंद्र सरकार के वार्ताकर रहे एमएम अंसारी कहते हैं कि बहुत मुमकिन है कि कोई पक्ष इस मसले को संयुक्त राष्ट्र तक ले जा सकता है.
वह कहते हैं, “ये मुद्दा पहले भी यूएन में जा चुका है और दोनों देश वहां कह चुके हैं कि वे द्विपक्षीय बातचीत से इस मसले को हल करेंगे. अगर ऐसा न करते हुए हम यहां की स्थिति में बदलाव करने की कोशिश कर रहे हैं तो इससे बहुत सवाल उठते हैं.”
(बीबीसी)
ये भी पढ़ें ⬇️
जम्मू-कश्मीरः जानें, क्या है धारा 370 और 35A का इतिहास, जिसको आज खत्म कर दिया गया.
पुस्तक अंश : नेहरू न होते, तो कश्मीर न होता!
अनुच्छेद 35A : संविधान का अदृश्य हिस्सा जिसने कश्मीर को लाखों लोगों के लिए नर्क बना दिया है;
बलिदानी कौम-गुरुओं व सिक्ख भाइयों ने हमारे लिए क्या-2 किया ?
कैसे हिंदुओं को जाति में बांटा गया?
रोहिंग्या मुसलमान : भारत और भारतीय धर्म के विरुद्ध जिहादी ट्रॉजन हॉर्स;
4 thoughts on “क्या भारत ने कश्मीर मामले में यूएन प्रस्तावों को ताक पर रखा?”