गोरखपुर की बेटी आयशा बनी एक दिन की ब्रिटिश उच्चायुक्त, लैंगिक समानता और मानवाधिकार पर कही ये बात ..
गोरखपुर: भारत में ब्रिटेन की एक दिन के लिए उच्चायुक्त बनीं गोरखपुर की 22 वर्षीय आयशा खान कहती हैं कि वे लैगिंग समानता और मानवाधिकार के क्षेत्र में काम करना चाहती है। उन्हें उम्मीद है कि उनका यह सपना अवश्य पूरा होगा।
उच्चायुक्त बनी 22 वर्षीय आयशा खान ने
कहा कि, छोटे शहरों की लड़कियों में ऊंडान भरने का मौका मिले तो अच्छा करेंगी
सीएम सिटी गोरखपुर के शिवपुर साहबाजगंज मोहल्ले की गांधी गली में मकान संख्या 63 जी आयशा खान का घर है। वह इन दिनों दिल्ली में हैं। आयशा वहां हिसार विश्वविद्यालय से संबंद्ध भारतीय विद्या भवन से मॉस कम्युनिकेशन अंतिम वर्ष की छात्रा हैं।आयशा ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर ब्रिटिश उच्चायोग 18 से 23 साल की लड़कियों के लिए एक दिन का ब्रिटिश उच्चायुक्त बनने की प्रतिस्पर्धा आयोजित करता है।
विजेता को बकायदा उच्चायोग में पूरे दिन हाई कमिश्नर की कुर्सी पर बैठ उसके काम को अंजाम देने का मौका मिलता है। आयशा बताती है कि इस प्रतिर्स्धा के अंतर्गत उन्होंने भी लैंगिंग समानता पर एक मिनट का वीडियो रिकार्ड कर भेजा था, जिसमें उनका चयन हो गया। उन्हें एक दिन के लिए उच्चायुक्त बनने का मौका मिला।
सावित्री बाई फुले और ज्योतिबा फुले से प्रभावित हैं आयशा।
आयशा कहती है कि उनका सपना है कि वे लैगिंग समानता एवं मानवाधिकार के क्षेत्र में कार्य करें। भारत की प्रथम महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले और उनके पति ज्योतिबा फुले के जीवन संघर्ष और उपलब्धियों से प्रभावित आयशा कहती है कि उन्होंने अपने वीडियो में भी सावित्री बाई फूले और ज्योतिबा फुले का जिक्र शिक्षा को लैगिंग समानता के लिए अनिवार्य बताया था।
प्रतिस्पर्धा को लेकर तनाव था
आयशा कहती है कि महानगरीय पृष्ठभूमि की लड़कियों के बीच हो रही इस प्रतिस्पर्धा को लेकर उन्हें थोड़ा तनाव था। 22 सितंबर को जब इसकी जानकारी मिली तो सहज विश्वास नहीं हो रहा था। सबसे पहले मॉ सीमा जुनेद को कॉल कर सफलता की जानकारी दी।
परिवार ने सदैव बढ़ाया मनोबल
एक सवाल के जवाब में आयशा कहती है,‘अम्मा और अब्बा ने हमेशा ही हम दोनों बहनों का मनोबल बढ़ाया, क्या पढ़ना है्? कहां पढ़ना है? सब हम बहनों ने तय किया। हम दोनों बहने, दूसरों के खुशकिस्मत थी कि दादा, अम्मा और अब्बा ने हमें हमेशा ज्यादा पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। कभी लड़का-लड़की में फर्क नहीं किया, न एहसास दिलाया।’
छोटे शहरों की बेटियों में भी उड़ान का माद्दा
आयशा का मानना है कि छोटे शहरों की लड़कियों में भी बड़े आसमान पर उड़ने का हौसला और जज्बा है। इन लड़कियों को सिर्फ मौके की तलाश है। आयशा कहती है कि ब्रिटिश उच्चायुक्त सर डोमिनिक ने भी मनोबल बढ़ाया। उन्होंने बताया कि पिछले साल की अपेक्षा तीन गुना अधिक प्रतिभागी इस बार थे जिनमें अपनी प्रतिभा के बल पर मुझे सफलता मिली।
कभी रत्ती भर ख्याल नहीं आया की बेटियां ही हैं: मॉ सीमा जुनेद
आयशा की मॉ सीमा जुनेद कहती है कि,‘आज तक कभी ख्याल नहीं आया कि मेरी दो बेटियां ही हैं। न अयशा के पिता न उनके दादा को। हम तो दोनों (आयशा और जुवेरिया)की पढ़ाई लिखाई और उनका ध्यान रखने में ही इतने मशरूफ हो गए कि कुछ और सोचा ही नहीं। आज कहती हूं कि अल्लाह सभी को ऐसी बेटियां दें।’
22-yr-old Ayesha Khan,from UP's Gorakhpur became British High Commissioner for a day on Oct4 after she won 'High Commissioner for a Day'challenge,says,"I was lucky to get such an opportunity.I met a diverse group of people.I want to do ground work in human rights&gender equality" pic.twitter.com/oJk30IBZAE
— ANI (@ANI) October 11, 2019
सीमा जुनेद का विवाह जब जुनेद अहमद से हुआ तो वे लखनऊ विश्वविद्यालय में बीए प्रथम वर्ष की छात्रा थी। निकाह के बाद ससुराल गोरखपुर आ गई। यही से लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक किया, फिर गोरखपुर विश्वविद्यालय से नियमित कक्षाएं कर उर्दू में एमए किया। आयशा के पिता जुनेद अहमद खान जैतपुर(गोरखपुर) में पूर्वांचल बैंक के मैनेजर हैं। मॉ सीमा जुनेद गृहणी हैं। आयशा के दादा समशुल हक खान पूर्वोत्तर रेलवे मुख्यालय गोरखपुर के वाणिज्यिक विभाग में सेवानिवृत हैं। बड़ी बहन जुवेरिया का निकाह हो चुका है। भुवनेश्वर से उन्होंने दंत चिकित्सक की डिग्री ली, फिलहाल दुबई में रहती हैं।