घर का भेदी लंका ढाए
बहुत समय पहले की बात हैं कि एक वन में एक विशाल बरगद का पेड़ कौओं की राजधानी था. हजारों कौए उस पर वास करते थे. उसी पेड़ पर कौओं का राजा मेघवर्ण भी रहता था.
बरगद के पेड़ के पास ही एक पहाडी थी, जिसमें असंख्य गुफाएं थीं. उन गुफाओं में उल्लू निवास करते थे, उनका राजा अरिमर्दन था. अरिमर्दन बहुत पराक्रमी राजा था. कौओं को तो उसने उल्लुओं का दुश्मन नम्बर एक घोषित कर रखा था. उसे कौओं से इतनी नफरत थी कि किसी कौए को मारे बिना वह भोजन नहीं करता था.
जब बहुत अधिक कौए मारे जाने लगे तो उनके राजा मेघवर्ण को बहुत चिन्ता हुई. उसने कौओं की एक सभा इस समस्या पर विचार करने के लिए बुलाई. मेघवर्ण बोला मेरे प्यारे कौओ, आपको तो पता ही हैं कि उल्लुओं के आक्रमणों के कारण हमारा जीवन असुरक्षित हो गया हैं. हमारा शत्रु शक्तिशाली हैं और अहंकारी भी. हम पर रात को हमले किए जाते हैं. हम रात को देख नहीं पाते. हम दिन में जवाबी हमला नहीं कर पाते, क्योंकि वे गुफाओं के अंधेरों में सुरक्षित बैठे रहते हैं.
फिर मेघवर्ण ने स्याने और बुद्धिमान कौओं से अपने सुझाव देने के लिए कहा.
एक डरपोक कौआ बोला हमें उल्लू से समझौता कर लेना चाहिए. वह जो शर्ते रखें, हम स्वीकार करें. अपने से तकतवर दुश्मन से पिटते रहने में क्या तुक है?
बहुत-से कौओं ने कां कां करके विरोध प्रकट किया. एक गर्म दिमाग का कौआ चीखा हमें उन दुष्टों से बात नहीं करनी चाहिए. सब उठो और उन पर आक्रमण कर दो.
एक निराशावादी कौआ बोला शत्रु बलवान हैं. हमें यह स्थान छोडकर चले जाना चाहिए.
स्याने कौए ने सलाह दी अपना घर छोडना ठीक नहीं होगा. हम यहां से गए तो बिल्कुल ही टूट जाएंगे. हमे यहीं रहकर और पक्षियों से सहायता लेनी चाहिए.
कौओं में सबसे चतुर व बुद्धिमान स्थिरजीवी नामक कौआ था, जो चुपचाप बैठा सबकी दलीलें सुन रहा था. राजा मेघवर्ण उसकी ओर मुडा महाशय, आप चुप हैं. मैं आपकी राय जानना चाहता हूं.
स्थिरजीवी बोला महाराज, शत्रु अधिक शक्तिशाली हो तो छलनीति से काम लेना चाहिए.
कैसी छलनीति? जरा साफ-साफ बताइए, स्थिरजीवी. राजा ने कहा.
स्थिरजीवी बोला आप मुझे भला-बुरा कहिए और मुझ पर जानलेवा हमला कीजिए.
मेघवर्ण चौंका यह आप क्या कह रहे हैं स्थिरजीवी?
स्थिरजीवी राजा मेघवर्ण वाली डाली पर जाकर कान मे बोला छलनीति के लिए हमें यह नाटक करना पडेगा. हमारे आसपास के पेड़ों पर उल्लू जासूस हमारी इस सभा की सारी कार्यवाही देख रहे हैं. उन्हे दिखाकर हमें फूट और झगडे का नाटक करना होगा. इसके बाद आप सारे कौओं को लेकर ॠष्यमूक पर्वत पर जाकर मेरी प्रतीक्षा करें. मैं उल्लुओं के दल में शामिल होकर उनके विनाश का सामान जुटाऊंगा. घर का भेदी बनकर उनकी लंका ढाऊंगा.
फिर नाटक शुरु हुआ. स्थिरजीवी चिल्लाकर बोला मैं जैसा कहता हूं, वैसा कर राजा कर राजा के बच्चे. क्यों हमें मरवाने पर तुला हैं?
मेघावर्ण चीख उठा गद्दार, राजा से ऐसी बदतमीजी से बोलने की तेरी हिम्मत कैसे हुई?कई कौए एक साथ चिल्ला उठे इस गद्दार को मार दो.
राजा मेघवर्ण ने अपने पंख से स्थिरजीवी को जोरदार झापड मारकर तनी से गिरा दिया और घोषणा की मैं गद्दार स्थिरजीवी को कौआ समाज से निकाल रहा हूं. अब से कोई कौआ इस नीच से कोई संबध नहीं रखेगा.
आसपास के पेड़ों पर छिपे बैठे उल्लू जासूसों की आंखे चमक उठी. उल्लुओं के राजा को जासूसों ने सूचना दी कि कौओं में फूट पड गई हैं. मार-पीट और गाली-गलौच हो रही हैं. इतना सुनते ही उल्लुओं के सेनापति ने राजा से कहा महाराज, यही मौका हैं कौओं पर आक्रमण करने का. इस समय हम उन्हें आसानी से हरा देंगे.
उल्लुओं के राजा अरिमर्दन को सेनापति की बता सही लगी. उसने तुरंत आक्रमण का आदेश दे दिया. बस फिर क्या था हजारों उल्लुओं की सेना बरगद के पेड़ पर आक्रमण करने चल दी. परन्तु वहां एक भी कौआ नहीं मिला.
मिलता भी कैसे? योजना के अनुसार मेघवर्ण सारे कौओं को लेकर ॠष्यमूक पर्वत की ओर कूच कर गया था. पेड़ खाली पाकर उल्लुओं के राजा ने थूका- कौए हमारा सामना करने की बजाए भाग गए. ऐसे कायरों पर हजार थू. सारे उल्लू हू हू की आवाज निकालकर अपनी जीत की घोषणा करने लगे. नीचे झाडियों में गिरा पडा स्थिरजीवी कौआ यह सब देख रहा था. स्थिरजीवी ने कां-कां की आवाज निकाली. उसे देखकर जासूस उल्लू बोला अरे, यह तो वही कौआ हैं, जिसे इनका राजा धक्का देकर गिरा रहा था और अपमानित कर रहा था.
उल्लुओं का राजा भी आया. उसने पूछा तुम्हारी यह दुर्दशा कैसे हुई? स्थिरजीवी बोला मैं राजा मेघवर्ण का नीतिमंत्री था. मैंने उनको नेक सलाह दी कि उल्लुओं का नेतॄत्व इस समय एक पराक्रमी राजा कर रहे हैं. हमें उल्लुओं की अधीनता स्वीकार कर लेनी चाहिए. मेरी बात सुनकर मेघवर्ण क्रोधित हो गया और मुझे फटकार कर कौओं की जाति से बाहर कर दिया. मुझे अपनी शरण में ले लीजिए.
उल्लुओं का राजा अरिमर्दन सोच में पड गया. उसके स्याने नीति सलाहकार ने कान में कहा राजन, शत्रु की बात का विश्वास नहीं करना चाहिए. यह हमारा शत्रु हैं. इसे मार दो. एक चापलूस मंत्री बोला नहीं महाराज! इस कौए को अपने साथ मिलाने में बडा लाभ रहेगा. यह कौओं के घर के भेद हमें बताएगा.
राजा को भी स्थिरजीवी को अपने साथ मिलाने में लाभ नजर आया, उल्लू स्थिरजीवी कौए को अपने साथ ले गए. वहां अरिमर्दन ने उल्लू सेवकों से कहा स्थिरजीवी को गुफा के शाही मेहमान कक्ष में ठहराओ. इन्हें कोई कष्ट नहीं होना चाहिए.
स्थिरजीवी हाथ जोडकर बोला महाराज, आपने मुझे शरण दी, यही बहुत हैं. मुझे अपनी शाही गुफा के बाहर एक पत्थर पर सेवक की तरह ही रहने दीजिए. वहां बैठकर आपके गुण गाते रहने की ही मेरी इच्छा हैं. इस प्रकार स्थिरजीवी शाही गुफा के बाहर डेरा जमाकर बैठ गया.
गुफा में नीति सलाहकार ने राजा से फिर से कहा महाराज! शत्रु पर विश्वास मत करो. उसे अपने घर में स्थान देना तो आत्महत्या करने समान हैं. अरिमर्दन ने उसे क्रोध से देखा तुम मुझे ज्यादा नीति समझाने की कोशिश मत करो. चाहो तो तुम यहां से जा सकते हो. नीति सलाहकार उल्लू अपने दो-तीन मित्रों के साथ वहां से सदा के लिए यह कहता हुआ विनाशकाले विपरीत बुद्धि.
कुछ दिनों बाद स्थिरजीवी लकडियां लाकर गुफा के द्वार के पास रखने लगा सरकार, सर्दियां आने वाली हैं. मैं लकडियों की झोपडी बनाना चाहता हूं ताकि ठंड से बचाव हो. धीरे-धीरे लकडियों का काफी ढेर जमा हो गया. एक दिन जब सारे उल्लू सो रहे थे तो स्थिरजीवी वहां से उडकर सीधे ॠष्यमूक पर्वत पर पहुंचा, जहां मेघवर्ण और कौओं सहित उसी की प्रतीक्षा कर रहे थे. स्थिरजीवी ने कहा अब आप सब निकट के जंगल से जहां आग लगी हैं एक-एक जलती लकडी चोंच में उठाकर मेरे पीछे आइए.
कौओं की सेना चोंच में जलती लकडियां पकड स्थिरजीवी के साथ उल्लुओं की गुफाओं में आ पहुंचा. स्थिरजीवी द्वारा ढेर लगाई लकडियों में आग लगा दी गई. सभी उल्लू जलने या दम घुटने से मर गए. राजा मेघवर्ण ने स्थिरजीवी को कौआ रत्न की उपाधि दी.
शत्रु को अपने घर में पनाह देना अपने ही विनाश का सामान जुटाना हैं.