भ्रष्टाचार और मंहगाई;

आर्थिक और व्यावसायिक तौर पर भारत ने निश्चित तौर पर तरक्की की है। तीसरी दुनिया का देश कहा जाने वाले भारत आज विश्व की तीसरी महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। दूसरी तरफ सामाजिक विषमताएं और राजनीतिक जटिलताएं अभी भी भारतीय लोकतंत्र की परेशानी का सबब बनी हुईं हैं। इतने सालों का ये सफर भारतीय लोकतंत्र के विकास की एक ऐसी कहानी कहता है, जिसमें कई उतार चढ़ाव हैं।
आजादी के सफर में कुछ विषमताएं ऐसी है जिन पर चर्चा बहुत जरूरी है। एक तरफ हम चांद और मंगल पर जा पहुंचे हैं तो दूसरी ओर घर में चांद सी बिटिया नहीं चाहते। एक तरफ हम बच्चों को हुनरमंद और अच्छी नौकरी में देखना चाहते हैं, लेकिन उच्च शिक्षा इतनी महंगी हो गई है कि पढ़ाई मुहाल हो गई है। एक तरफ प्रेम को आधार बनाकर बनी फिल्में सुपरहिट हो जाती हैं तो दूसरी तरफ प्रेम विवाह करने वालों को जान से मार दिया जाता है।
एक तरफ देश में करोड़पतियों की संख्या एक लाख हो गई है तो दूसरी तरफ करीब 43 फीसदी आबादी दिन में रोज बीस रुपए भी नहीं कमा पाती। एक तरफ शहरों में मॉल कल्चर पनपा है और भारतीय शहरियों की खर्च करने की कैपेसिटी बढ़ी है तो दूसरी तरफ गांवों में अभी तक बुनियादी सुविधाओं का अकाल है।
आर्थिक तौर पर मजबूत बना है भारत
1947 में जब भारत आजाद हुआ तब अंग्रेजी हुकूमत भारत को इतना निचोड़ चुकी थी कि ‘सोने की चिड़िया’ कहलाने वाला भारत कंगाली के दर्जे तक पहुंच गया था। ऐसे में भारत-पाक विभाजन ने रही सही कसर पूरी कर दी। आजाद भारत को आर्थिक तौर पर संभलने में करीब ढाई दशक लगा। 1975 तक भारतीय उद्योग ठीक ठाक अवस्था में पहुंच चुके थे।
पिछले 20 सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय योगदान दिया है। भारत को विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर प्रोजेक्ट किया जा रहा है। 70सालों की एक बड़ी उपलब्धि इस क्षेत्र में तब मिली जब 2008 में भारत ने 9.4 फीसदी की विकास दर हासिल की। अर्थशास्त्री भी इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि आने वाले कुछ सालों में भारत विकासशील से विकसित देशों की कतार में शामिल हो
जाएगा।
महंगी होती उच्च शिक्षा
आंकड़ों पर यकीन किया जाए तो दुनिया के सबसे ज्यादा युवा भारत में हैं। इस लिहाज से भारत में उच्च शिक्षा की स्थिति मजबूत और बेहतर होनी चाहिए। लेकिन स्थिति इसके उलट है। देश में उच्च शिक्षा बहुत महंगी है।
आम आदमी अपने होनहार बच्चों को मेडिकल, आईटी जैसे कोर्स कराने का सपना देखता है लेकिन महंगी पढ़ाई और भारी भरकम डोनेशन से उसके हौंसले पस्त हो जाते हैं। दूसरी ओर, यहां कदम कदम पर फर्जी इंस्टीट्यूट खुल गए हैं जो महज कुछ कमाई के लिए विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खेल रहे हैं।
डंस रहे हैं सामाजिक विषमता के नाग
अपने आपको आधुनिक कहने वाले भारत में सामाजिक विषमता की गहरी खाई है। हालांकि सामाजिक और जातीय विषमता तो आजादी से पहले भी थी लेकिन आधुनिक भारत में इसकी मार भयंकर है। एक तरफ समलैंगिकों को अधिकार देकर अदालतें न्याय और बराबरी की मिसाल पैदा कर रही हैं तो दूसरी तरफ ‘कन्या भ्रूण हत्या’, ‘दहेज हत्या’, ‘यौन शोषण’, ‘बाल श्रम’ और ‘ऑनर किलिंग’ के मामले समाज को निचले दर्जे पर ला रहे हैं।
पिछले एक दशक में बलात्कार के मामलों ने रिकार्ड तोड़ दिया है। जिस भारत में औरत को ‘देवी मां’ का दर्जा दिया जाता है, उसी भारत में औरतों को ‘डायन’ बताकर नग्न घुमाने के मामले शर्मिंदा करते हैं। ऐसा लगता है जैसे की समाज में संवेदनशीलता खत्म हो गई है। एक तरफ ‘लिव इन’ का चलन बढ़ा है तो दूसरी तरफ वृद्धाश्रम में बुजुर्गो की तादाद भी बढ़ी है। संयुक्त परिवार एकल परिवारों में टूट गए हैं और एकल परिवार सिंगल पेरेंट में बदल रहे हैं।
बढ़ती महंगाई और बढ़ते गरीब
महंगाई ‘सुरसा’ की तरह मुंह फैला रही है और गरीबी ‘फीनिक्स’ पक्षी की तरह बार-बार अपनी ही राख से फिर पैदा हो जाती है। गरीबी की रेखा 22 रुपए और 32 रुपए के बीच झूल रही है। महंगाई इतनी तेजी से बढ़ी है कि सरकार का नारा ‘गरीबी हटाओ’ की बजाय ‘गरीब हटाओ’ में तब्दील होता दिख रहा है। विडंबना है कि कृषि आधारित भारत में खाद्य महंगाई सर्वाधिक तेजी से बढ़ी है।