मेहनत और ईमान का प्रतीक ‘गधा’

सुनने में तो बड़ा अटपटा सा लगा होगा। लेकिन ये एक ऐसा शब्द है जिसका प्रयोग अमूमन अधिकतर लोग करते हैं। या यू कह सकते है कि थोड़ा गुस्सा शांत करने के लिए भी ‘गधे’ शब्द का उपयोग कर देते हैं। लेकिन यदि देखा जाए तो मनुष्य की ज़िंदगी में सबसे ज्यादा यदि पशु का नाम लिया जाता है तो वो फैमस नाम ‘गधे’ का है। जी हां दिन भर ‘कमर तोड़’ मेहनत के बाद भी उसे पूर्ण रुप से खाने के लिए नहीं मिल पाता मिलती है तो सिर्फ ‘सूखी हुई घास’ साथ में एक-दो डंडे और खाने के लिए मिल जाते हैं। वैसे किसी से कोई भी कार्य ना हो अथवा गलत हो या उसे समझदारी से ना करें तो उसे ‘गधा’ बोल दिया जाता है, लेकिन यदि वास्तव में देखा जाए तो ‘गधे’ जैसा समझदार भी पशु जाति में नहीं दिखता। यहां ईमानदार और समझदारी से मतलब ये है कि ‘गधे’ को केवल एक बार जगह दिखाने पर वह खुद-ब-खुद वहां से आता जाता रहेगा। लेकिन कार्य के प्रति उसका समर्पण वास्तव में काबिले तारिफ है।
में मेरे निर्माणाधीन मकान से वर्तमान निवास की और आज आ रहा था मेने रास्ते में पत्थरों से लदे कई गधे देखे जिसे एक किशोर हांक रहा था, एक गधे पर वह स्वयं आसीन था और हाथ में एक पतली लकड़ी थी जिसे वो किसी रण बाँकुरे की तरह तलवार की भांति गधों को सतत चलते दौड़ते रखने की चेतवानी देता हुआ गुमा रहा था, ये दृश्य देख मुझे गधों के कस्ट मय और दुष्कर जीवन के बारे में बड़ा रंज हुआ,
जाति तौर पर में गधे को बहुत सम्मान देता हु ..गधा इन्सान के जीवन में बहुत महत्व रखता है .जब आवागमन के साधनों का विकास नहीं हुआ था तब गधे ने ही इन्सान का बोझा उठाया और आज भी उठा रहा है ..ऐसे निष्पाप, परोपकारी ,स्नेही , कर्तव्य परायण , निष्ठावान, श्रमशील, सादगीपूर्ण, मितव्ययी जीव को में जहां भी श्रम करते हुए देखता हूँ तो उसके प्रति में तुरंत श्रद्धावनत होकर सस्ठांग दंडवत करता हूँ . मेरा जीवन भी इस जीव से बहुत प्रभावित है .में इससे सदेव प्रेरणा लेता हु .ये हमें श्रमशील कर्मशील बनने का सन्देश देता है ,,जो मनुष्य अपने जीवन में गधे के संस्कारों को जीवन में उतार ले .सफलता उसके चरण स्प्सर्ष करती है .हे मित्रों .गधे को सम्मान देना देश की अधिसंख्य जनता को सम्मान देना है जो रात दिन कूछ हरामखोरों के लिए काम करती रहती रही है ,,फिर भी उफ़ तक नहीं करती ..
वेसे तो गधे को गदर्भ भी कहते हैं पर गधे को बैशाख नंदन पुकारे जाने पर में अति प्रसन्न होता हूँ क्योंकि ये सम्मानीय नाम इसके चरित्र के साथ पूरा न्याय करता है, हमारे समाज और परिवार में विशेषकर पढाई में भोंट छात्रों को गधा कह कर संबोधित करने की परम्परा रही है .मेरा छात्र जीवन बहुत अल्प रहा और अक्षर ज्ञान के बाद ही मेने विद्द्यालय को सदेव के लिए तिलांजलि दे दी, तब भी मुझे मेरे पिताश्री द्वारा गधा कह कर संबोधित किया और कहा की पढ़ा नहीं इसलिए गधे की तरह काम करेगा .पढता तो अफसर बनता तो बैठे बैठे धन कमाता, यानी हमारे समाज में प्रारंभ से ही मेहनतकश वर्ग को गधे की उपमा दी जाती है, पर में निराश नहीं हूँ और मुझे आज भी गधे की तरह मेहनत करना अच्छा लगता है हांलाकि इससे मेरा और मेरे परिवार का उदर पोषण भी कठिनाई से होता है पर में संतुस्ट हूँ भले ही गधा हूँ पर ईमानदार हूँ और इस तत्व की इस भ्रस्ट वातावरण में बड़ी कमी है,
में जब कभी किसी ईमारत की छाँव में किसी गधे को अपनी तीन टांगों पे खड़े हुए आँखे मूंदे फुर्सत के क्षणों में सुस्ताता देखता हूँ तो मानो ऐसा महसूस होता है जेसे कोई महान चिंतक इस देश में मेहनत का कूछ हरामखोरों द्वारा बैंड बजाया जा रहा है उस पर निंदा प्रस्ताव पारित कर रहा हो, में उससे प्रेरणा लेता हूँ और उस महान जीव का नेत्रत्व स्वीकार करता हूँ जो मेहनतकश वर्ग का परचम इस हरामखोरी के वातावरण में भी लहराए हुए है, ये जीव भूखा प्यासा घायल अवस्था में भी बोझा ढोता है पर उफ़ तक नहीं करता में इसकी सहनशीलता का भी कायल हूँ
अभी पिछले दिनों राजस्थान के चित्तोड़ जिले में कूछ महा मूर्खों द्वारा गधों का सम्मान किया उनकी शोभयात्रा निकाली और उन्हें गुलाबजामुन का सेवन करवा कर अपने आप को उनके प्रति कृतग्य किया कि. है बैसाखनंदन हम तेरे अंतर्मन से आभारी है की तू इस भ्रस्ताचार के वातावरण में भी मेहनत की मानव जीवन में उपयोगिता की अलख जगाये हुए है. राजस्थान के दौसा जिले में प्रति वर्ष गधों का मेला भरता है हिसमे हजारों गधे क्रय विक्रय के लिए आते हैं और इस महान जीव के गुणों के पारखी इसकी बढ़ चढ़ कर बोलियाँ लगातें है .सुना है की पिछले वर्ष शाहरुख़ खान न���म का बैशाख नंदन एक लाख से भी ज्यादा रुपयें में बिका उससे पूर्व सलमान खान नाम का, मुझे ये सुन के हर्ष होता है की .इस दुष्ट ज़माने में भी कुछ महान लोग है जो इस जंतु के कदरदान है .इस महान मेहनतकश जीव के बारे में बहुत लिख सकता हूँ पर मुझे आप सम्मानित मित्रों के अमूल्य समय का भी ख्याल है .कुल मिला कर लब्बो लुबाव ये है की अगर इस देश से भ्रस्तचार मिटाना है तो गधे को सम्मान देना उसके संस्कारों को और उसके जीवन चरित्र को जीवन में उतारना नितांत आवश्यक है .जब तक दुनिया में गधा है मेहनत पर विश्वास करने वालों को प्रेरणा देता रहेगा .सरकार को इस जंतु के विकास के लिए विशेस प्रयास करने की जरूरत है .और इसे रास्ट्रीय जंतु घोषित किया जाना उचित निर्णय होगा .इससे मुझ जेसे व्यक्ति जो गधे जेसा जीवन व्यतीत कर अपना जीवनयापन कर रहे है उन्हें समाज में उचित अवसर और सम्मान प्राप्त हो सकेगा ..में इस महान जीव को सादर नमन करता हूँ .और ये मुगालता ही है या गधे के बारे में इसके विरोधियों द्वारा उड़ाई गई अफवाह की गधे में अक्ल नहीं होती ..मैं कहता हूँ हम इंसानों से ज्यादा अक्ल गधे में होती है .हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या ..आजमा लो ..गधे के सामने एक बाल्टी दारु और एक बाल्टी पानी रख दो ..गधा दारु नहीं पिएगा क्योंकि वो जानता है की दारु स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तथा चरित्र का नाश करती है ..जबकि इन्सान पहले दारू पिएगा .इसी तरह गधे को तम्बाखू के खेत में छोड़ दो .वो उन तम्बाखू की हरी पत्तियों को सुन्घेगा भी नहीं .जबकि हरी घास को मजे से खायेगा ,अब बताओ अक्लमंद कौन हुआ गधा या हम
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इसलिए सबसे पहले हम गधों के बारे में मोटा-मोटी जान लें.
1. गधा पांच हजार सालों से इंसानों के लिए बोझा ढो रहा है.
2. दुनिया में करीब चार करोड़ गधे हैं.
3. गधों की लगभग 189 नस्लें हैं. (द डोमेस्टिक एनिमल डाइवर्सिटी इनफॉर्मेशन सिस्टम के सर्वे के हिसाब से )
4. सबसे ज्यादा गधे चाइना में हैं.
5. गधों की मेमोरी बड़ी तेज होती है. वो जिस रास्ते को एक बार देख लें, उसे पच्चीस साल तक नहीं भूलते.
6. एक गधा चालीस से पचास साल तक जिन्दा रहता है.
7. नर्वस घोड़ों को गधों के साथ रखा जाता है, क्योंकि गधों के पास “यो ब्रो, चिल्ल “ का एक इफेक्ट होता है जिससे घोड़े शांत हो जाते हैं.
8. वैसे तो गधों को अकेले रहना पसंद नहीं है, लेकिन एक ‘सिंगल’ गधा बकरियों के बीच रहकर बड़ा खुश होता है.
9. गधी का दूध बीमार बच्चों के लिए बहुत फायदेमंद होता है. गधी के दूध में गाय के दूध से ज्यादा प्रोटीन और शुगर होता है. लेकिन फैट कम.
10. ब्रिटेन में 2005 के बाद से ट्रैवलिंग गधों के लिए भी पासपोर्ट जरूरी कर दिया गया.
गधे से सीखो ढीठ बनना
गधों के ढीठ होने के स्टीरियोटाइप के बारे में एक्सपर्ट्स का कुछ और ही कहना है. जिस चीज़ को हम ढीठपना कहते हैं वो असल में गधों के लिए आत्मसुरक्षा हैं. गधे पहले चीज़ को ध्यान से देखते हैं, समझते हैं, फैसला लेते हैं. अगर उनका फैसला इंसान से अलग हो जाए तो इंसान अपनी ओपिनियन गधों पर थोप देता है. लेकिन अगर एक बार उनको अपने मालिक पर ट्रस्ट हो जाए तो सबसे ज्यादा सपोर्ट दिखाते हैं. गधे अपनी मर्ज़ी का बड़ा सम्मान करते हैं. काम में इंटरेस्ट न हो तो वो ढीठ बनना पसंद करते हैं. गधों की यह यूनीक चीज़ इंसानों को सीखनी चाहिए. जब मन ना हो तो इंजिनियरिंग नहीं करना चाहिए.
गधे मेहनत करना सिखाते हैं. गधे अपनी मर्ज़ी की इज्ज़त कैसे करनी चाहिए सिखाते हैं. गधे ढीठ बनना सिखाते हैं. गधे बेवकूफी नहीं, बल्कि जिंदगी जीने का एक तरीका सिखाते हैं.
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