वफादार कुत्तों को रिटायरमेंट के बाद इंडियन आर्मी क्यों मार देती है गोली, क्या है वजह जानिए..
कुत्तों का जिक्र आते ही हमें सबसे पहले वफादारी का ख्याल आता है,इंडियन आर्मी इन कुत्तों को खास ट्रेनिंग देती है. इनकी बम सूंघने और खतरा पकड़ लेने की क्षमता बहुत तेज होती है. भारतीय सेना के पास ज्यादातर लैब्राडॉर, जर्मन शेफर्ड, बेल्जियन शेफर्ड नस्ल के कुत्ते हैं. ये कुत्ते रैंक से नहीं नाम और नंबर से पहचाने जाते हैं. इनका इस्तेमाल सेना अपने विस्फोटक खोजी दस्ते में करती है. सेना का घुड़सवार दस्ता माउंटेन रेजिमेंट वैसे ही चर्चित है. ऊंचाई के क्षेत्रों में माल वगैरह ढोने में भी घोड़े, खच्चरों का इस्तेमाल होता है.
इन कुत्तों की बुद्धि की क्षमता इनकी नस्ल पर निर्भर करती है, इसीलिए सारे कुत्ते एक से नहीं होते. अलग नस्ल के कुत्तों का अलग-अलग टैलेंट होता है, इसीलिए उन्हें अलग-अलग कामों में लगाया जाता है. साथ ही कई बार उन जगहों पर भी कुत्ते जांच कर सकते हैं, जहां कर बार जवानों के लिए जाकर जांच करना आसान नहीं होता.
आर्मी क्यों करती थी ऐसा?
यह बुरा चलन अंग्रेजों के वक्त से ही चला आ रहा था. इंडियन आर्मी ऐसा देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए करती थी. आर्मी के लोगों को डर रहता था कि कहीं कुत्ते गलत हाथों में न पड़ जाएं. ऐसे में उनका गलत इस्तेमाल हो सकता था, क्योंकि इन एक्सपर्ट कुत्तों को आर्मी के सेफ और खूफिया ठिकानों के बारे में पूरी जानकारी होती है.
आर्मी के कुत्तों को रिटायरमेंट के बाद मार दिया जाता है – वफादारी के मामले में कुत्ते सबसे ज्यादा विश्वासी होते हैं.
अपने मालिक के लिए आखिरी दम तक मर मिटने को तैयार रहते हैं. बस इन्हें थोड़ी सी प्यार और देखभाल की आवश्यकता होती है.
बदले में हर पल अपने मालिक के लिए तैयार रहते हैं. साथ हीं कुत्ते के सूंघने की प्रवृत्ति भी काफी तेज होती है. कुत्तों में खोजी प्रवृत्ति भी मौजूद होती है. इनके सूंघने की क्षमता इतनी तीव्र होती है कि क्या कहने. कुत्ते बेहद एक्टिव जानवर होते हैंं. इसी वजह से जासूसी के लिए कुत्तों को हमेशा उपयोग में लाया जाता है. तभी तो सेना में भी कुत्तों को खास ट्रेनिंग देकर इनका इस्तेमाल किया जाता है.
लेकिन दोस्तों आपको जानकर हैरानी होगी कि वे कुत्ते जिन्हें इंडियन आर्मी बड़ी शिद्दत के साथ ट्रेंड करते हैं. लेकिन आर्मी के कुत्तों को रिटायरमेंट के बाद मार दिया जाता है – तो उसी वफादार कुत्ते को आर्मी सेना गोली मारकर मौत के घाट उतार देती है.
आपको बता दें कि सेना के इन कुत्तों को रिटायरमेंट के बाद मारे जाने का चलन अंग्रेजों के शासन काल से चला आ रहा है जो आज भी कायम है। कहा जाता है कि जब कोई डॉग एक महीने से अधिक समय तक बीमार रहता है या ड्यूटी नहीं कर पाता है तो उसे जहर देकर (एनिमल यूथेनेशिया) मार दिया जाता है। इसके पहले पूरे सम्मान के साथ उसकी विदाई की जाती है।
इसके पीछे की वजह पता नहीं कितनी वाजिब है. लेकिन कुत्तों के लिए इस बात को जानना दिल को रुलाने वाली है कि अखिर पूरी जिंदगी वफादारी का उसे सिला क्या मिलता है ?
वो बेजुबान वफादार जानवर तो इस बात से पूरी तरह अनभिज्ञ रहता है कि रिटायरमेंट के बाद उसे मौत दे दी जाएगी.
आरटीआई के जरिए पता चली वजह:-
क्यों आर्मी के कुत्तों को रिटायरमेंट के बाद मार दिया जाता है-
भारतीय सेना हो या पुलिस उनके साथ कुत्ते भी पूरी लगन के साथ अपनी ड्यूटी निभाते हैं. कुत्ते उन जगहों पर भी पहुंच सकते हैं जहां इंसान नहीं पहुंच सकते. बड़े से बड़े कार्यों को कुत्तों के द्वारा अंजाम दिया जाता है. लेकिन अब सवाल ये उठता है, कि आखिर भारतीय सेना इन वफादार कुत्तों को रिटायरमेंट के बाद गोली मारकर मौत के घाट क्यों उतार देती है ? क्या ये सही है ? आर्मी के इसी कारनामे से नाराज एक व्यक्ति ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए सेना से जवाब मांगा. जिसके बाद उन्हें सेना के द्वारा कुत्तों को मारे जाने के पीछे के कारणों को बताया गया.
सुरक्षा की दृष्टि से करते हैं ऐसा
आर्मी के कुत्तों को रिटायरमेंट के बाद मार दिया जाता है, सुरक्षा की द्रष्टि से. इंडियन आर्मी की मानें तो कुत्तों को मारने के पीछे सुरक्षा का ध्यान रखना होता है. सुरक्षा की दृष्टि से हीं रिटायर हुए कुत्ते को गोली मार दी जाती है. क्योंकि ये आशंका हमेशा बनी रहती है कि रिटायर होने के बाद कुत्ते कहीं गलत लोगों के हाथ न लग जाए. और अगर ऐसा हुआ तो देश को न जाने किस तरह की हानि का सामना करना पड़ सकता है. क्योंकि कुत्ते को हर उस गुप्त स्थान के बारे में पूरी जानकारी होती है जो आर्मी के अंडर रहता है. इसी वजह से सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस एतिहाद को बरतते हुए आर्मी के कुत्तों को रिटायरमेंट के बाद मार दिया जाता है. ऐसे में ना रहेगी कुत्ते की जिंदगी, और ना देश को किसी तरह की हानि का सामना करना पड़ेगा.
इतना ही नहीं, एक और वजह बताई जाती है कि एक उम्र के बाद कुत्ते के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. कुत्ते बीमार पड़ जाते हैं. इंडियन आर्मी कुत्ते की अच्छी देखरेख करती है. उसका इलाज करवाती है. लेकिन बावजूद इसके अगर कुत्ते के स्वास्थ्य में किसी तरह का कोई परिवर्तन नहीं होता, तो उसे गोली मार दी जाती है. ताकि कुत्ते की मौत तड़प कर ना हो.
दोस्तों, मुझे तो समझ नहीं आ रहा कि इंडियन आर्मी की इन दोनों वजहों को किस रूप में लिया जाए. क्या किसी की जिंदगी इतनी सस्ती है, कि उसे जब चाहे मौत के घाट उतार दिया जाए. एक तरफ तो इंसान को किसी के द्वारा गोली मारने पर गोली मारने वाले को मौत की सजा सुनाई जाती है. तो वहीं दूसरी तरफ एक बेजुबान जानवर, जो कि जिंदगी भर वफादारी करता रहता है. उसकी वफादारी का सिला ये मिलता है कि उसे गोली मारकर मौत दे दी जाती है.
केंद्र सरकार ने 2015 में कहा था कि वह ऐसी नीति तैयार कर रही है, जिसके तहत आर्मी में यूज होने वाले डॉग्स को मारा नहीं जाएगा.
2015 में सरकार ने कहा था कि वह ऐसी नीति तैयार कर रही है, जिसके तहत आर्मी में यूज होने वाले डॉग्स को मारा नहीं जाएगा बल्कि इसका कोई दूसरा विकल्प ढूंढा जाएगा. इन विकल्पों में से एक उन्हें एडॉप्ट करना भी है. कई देशों में कुत्तों को एडॉप्ट करने का कानून है.
यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट भी गया था. जिसमें अदालत का कहना था, सैन्य जानवरों को मौत की नींद सुलाने का चलन पशु क्रूरता रोकथाम कानून 1960 के प्रावधानों का खुला उल्लंघन है. 2017 में इसके लिए मेरठ में कुत्तों को एक ओल्ड ऐज होम वॉर डॉग ट्रेनिंग स्कूल में स्थापित किया गया है. इस मौके पर एक आर्मी ऑफिसर ने बताया था कि इन कुत्तों को केवल उसी स्थिति में मारा जाएगा जब मेडिकल तौर पर मौत ही अंतिम सहारा रह जाएगी. भारत में भी पहले से ही कर्नाटक और पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में इन कुत्तों को एडॉप्ट करने की सुविधा थी.
अलग-अलग देशों में रिटायर आर्मी डॉग्स को लेकर ये हैं कानून:-
अमेरिका में रिटायर होने वाले आर्मी डॉग्स को लोग अडॉप्ट कर लेते हैं. जिन्हें एडॉप्ट नहीं किया जाता, उन्हें एक खास एनजीओ को दे दिया जाता है. जो उनके आखिरी के दिनों में उनकी दवा आदि की अच्छी व्यवस्था करता है. रूस और चीन में भी कुत्तों को रिटायर होने के बाद गोली मारने का कानून नहीं है. बल्कि जापान में तो रिटायर हो चुके आर्मी डॉग्स के लिए अलग से एक हॉस्पिटल होता है. यहां पर कुत्तों के मालिक अपने बीमार कुत्तों को लाकर छोड़ भी सकते हैं. यहां कुत्तों के लिए बिल्कुल इंसानों जैसी सुविधाएं होती हैं.
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