शिक्षकों की भूमिका और दायित्व
शिक्षकों का अहम ध्येय युवा मतिष्कों को तेजस्वी बनाना है। तेजस्वी युवा धरती पर, धरती के नीचे और ऊपर आसमान में सबसे सशक्त संसाधन हैं। शिक्षक की भूमिका उस सीढ़ी जैसी है, जिसके जरिये लोग जीवन की ऊंचाइयों को छूते हैं, लेकिन सीढ़ी वहीं की वहीं रहती है। ‘सांप और सीढ़ी’ की खेल की भांति, सीढ़ी एक व्यक्ति को सांपों के लोक तक पहुंचा सकती है और असीमित सफलताओं की दुनिया तक भी। ऐसा उदार है इस पेशे का स्वभाव। हमारे समाज में और एक बच्चे के जीवन में, एक शिक्षक का स्थान माता पिता के बाद, लेकिन ईश्वर से पहले आता है। माता-पिता, गुरु और फिर ईश्वर। ऐसी महत्ता, मेरी जानकारी में, दुनिया में किसी और पेशे की नहीं है कि वह समज के लिए शिक्षक से बढ़कर महत्वपूर्ण हो।
शिक्षक, खास कर स्कूली शिक्षक के सामने व्यक्ति के जीवन को संवारने की भारी जिम्मेदारी होती है। बचपन ही वह आधारशिला है जिस पर जीवन की इमारत खड़ी होती है। जैसा बीज बचपन में बोया जाता है वैसा ही जीवन के वृक्ष में फल लगता है। इस लिए बचपन में दी जाने वाली शिक्षा कालेज या यूनिवर्सिटी में दी जाने वाली शिक्षा से अधिक महत्वपूर्ण होती है।
शिक्षक का ध्येय बच्चों का चरित्र निर्माण करना तथा ऐसे मूल्यों को रोपना होना चाहिए जिससे कि उनके सीखने की क्षमता में वृद्धि हो। वे उनमें वह आत्मविश्वास पैदा करें कि छात्र कल्पनाशील और सृजनशील बन सके। इस रूप में छात्रों विकास ही उन्हें भविष्य की चुनौतियों का सामना करते हुए प्रतिस्पद्धा में उतारेगा। सामान्य प्रक्रिया में शिक्षक कुछेक सर्वोत्तम परिणाम देने वाले छात्रों की ओर आकर्षित होते हैं तथा और अधिक सफलता प्राप्त करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करते रहते हैं। इसके विपरीत एक शिक्षक की अहम भूमिका यह है कि वह उन विद्यार्थियों की ओर ध्यान केन्द्रित करे जो पढ़ने में कमजोर हैं तथा उनमें बेहतर समझदारी एवं सीखने की प्रवृति विकसित करने का प्रयास करे। ऐसा शिक्षक ही वास्तविक गुरु होता है।
हमारे देश के एक महान नेता थे भीमराव अम्बेडकर। अम्बेडकर के नाम का महत्व पूरे नाम भीमराव अम्बेडकर में निहित है। भीमराव अछूत कही जाने वाली एक जाति के विद्यार्थी थे तथा अम्बेडकर उनके उच्चवर्ण के ब्राह्मण शिक्षक। शिक्षक अम्बेडकर अपने विद्यार्थी भीमराव का बहुत ध्यान रखते थे। वह न सिर्फ अपने विद्यार्थी को अपना ज्ञान देते थे, अपितु खाने के लिए अपने भोजन का एक हिस्सा भी उसे दे देते थे। पढ़ाई समाप्त करने के बाद जब भीमराव बैरिस्टर बने तो अपने उस गुरु को याद रखने के लिए अपना नाम बदलकर भीमराव अम्बेडकर रख लिया।
शिक्षक के गुण : महान शिक्षक एवं भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्ण शिक्षकों को सलाह देते थे कि-‘हमें सतत् बौद्धिक निष्ठा एवं सार्वभौम करुणा की खोज में रहना चाहिए। ये दोनों गुण किसी सच्चे शिक्षक की पहचान है।’ एक शिक्षक में अपने पेशे के प्रति प्रतिबद्धता होनी चाहिए। शिक्षक को जीवन भर अध्ययन करते रहना चाहिए। उसे शिक्षण और बच्चों से प्रेम होना चाहिए। उसे न सिर्फ विषय की सैद्धान्तिक बातें पढ़नी चाहिए बल्कि छात्रों में हमारी महान सभ्यता की विरासत और सामाजिक मूल्यों की जमीन भी तैयार करनी चाहिए। आधुनिक प्रौद्योगिकी की सहायता से शिक्षक छात्रों का ऐसा विकास करे कि वे बिना किसी शिक्षक की सहायता लिए स्वयं सीखने में सक्षम हो सकें। ज्ञान प्राप्ति के लिए चिंतन एवं कल्पना की स्वतंत्रता आवश्यक है और इसके लिए शिक्षक को उपयुक्त माहौल का निर्माण करना चाहिए।
शिक्षक रोड माडल होता है। वह न सिर्फ हमें ज्ञान देता है बल्कि हमारे जीवन को संवारते समय महान सपने और उद्देश्य होते हैं। दूसरी बात यह कि शिक्षा एवं ज्ञानार्जन की पूरी प्रक्रिया का परिणाम यह होना चाहिए कि व्यक्ति में पेशेवर क्षमता का विकास हो और उसमें इस आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति का उदय हो कि दृढ़तापूर्वक सारी बाधाओं को पार कर एक रूप रेखा, एक उत्पाद प्रणाली का विकास कर सके।
एक शिक्षक का जीवन कई दीपों को प्रज्जवलित करता है। आशा और मूल्याधारित शिक्षण में विश्वास करने वाले प्राथमिक, माध्यमिक और कालेज शिक्षा के मेरे शिक्षकों ने मुझे कई दशक आगे के लिए तैयार किया। इस प्रकार शिक्षक विद्यार्थियों को भविष्य के लिए तैयार करता है।
शिक्षण का ध्यय : शिक्षण का उद्देश्य छात्रों में राष्ट्र निर्माण की क्षमताएं पैदा करना है। ये क्षमताएं शिक्षण संस्थाओं के ध्यय से प्राप्त होती है तथा शिक्षकों अनुभव से सुदृढ़ होती है ताकि शिक्षण संस्थाओं से निकलने के बाद छात्रों में नेतृत्वकारी विशिष्टता आ जाए। एक कथन है ‘अगर आप निष्ठावान हैं तो और कोई चीज अर्थ नहीं रखती। अगर आप निष्ठावान नहीं हैं तो किसी भी दूसरी चीज का कोई अर्थ नहीं है।’ इस कथन से एक समीक्षात्मक संदेश मिलता है। अगर समाज में एक लाख योग्य, चरित्रवान एवं निष्ठावान छात्र हो जाएं तो वर्तमान कमजोर समाज को प्रत्येक पांच वर्ष में एक सुखद झटका दिया दा सकता है और यह कार्य शिक्षक, जो गुरु हैं, प्रेरणास्रोत हैं, वही कर सकते हैं।
शिक्षक दिवस : डॉं. सर्वपल्ली राधाकृष्णन हमारे देश के राष्ट्रपति भी रहे हैं और एक श्रेष्ठ अध्यापक भी। उनका जन्म पांच सितम्बर को हुआ था। जब भी कभी उनके जन्म दिन को सार्वजनिक रूप से मनाने की बात कही जाती थी तो वे कहके थे कि मेरा जन्म दिन नहीं, पांच सितम्बर को अध्यापक दिवस ही मनाएं जिससे सभी अध्यापकों को सम्मान मिले। छात्र-छात्राओं को तो यह दिन बड़े ही उत्साह से मनाना चाहिए और मेरी दृष्टि में छात्रों के अभिभावकों को इसमें पूरे उत्साह के साथ भाग लेना चाहिए। देश के प्रत्येक स्कूल पांच सितम्बर को अध्यापक दिवस बड़े उत्साह के साथ आयोजित करें। इस दिन हम अपने अध्यापकों का सम्मान करे कि कैसे उन्होंने अपना पूरा जीवन देश की भावी पीढ़ी के निर्माण में लगाया है और उनके पढ़ाये हुए छात्र किस प्रकार जिम्मेदार नागरिक बनकर समाज और राष्ट्र की सेवा कर रहे हैं।
इस दिन विशेष उपलब्धियों के लिए दिन अध्यापकों को हम सम्मानित करते हैं, उससे अन्य अध्यापक भी प्रेरणा लेते हैं। अंतत: शिक्षा का उद्देश्य है सत्य की खोज। इस खोज का केन्द्र अध्यापक होता है जो अपने विद्यार्थियों को शिक्षा के माध्यम से जीवन में व्यवहार में सच्चाई की शिक्षा देता है। छात्रों को जो भी कठिनाई होती है ,जो भी जिज्ञासा होती है, जो वे जानना चाहते हैं, उन सब के लिए वे अध्यापक पर ही निर्भर करते हैं। उनके लिए उनका अध्यापक एक तरह से एन्साइक्लोपीजिया (ज्ञान का भंडार) है जिसके पास सभी प्रशनों के उत्तर हैं। यदि शिक्षक के मार्गदर्शन में प्रत्येक व्यक्ति शिक्षा को उसके वास्तविक अर्थ में ग्रहण कर मानवीय गतिविधियों को प्रत्येक क्षेत्र में उसका प्रसार करता है तो मौजूदा इक्कीसवीं सदी में दुनिया काफी सुन्दर हो जाएगी।
(अदम्य साहस पुस्तक से साभार)
Sie, Aapne bahut accha likha hai,,
Mai aapke vicharo ka samman karta hu….
Thanks…Please Follow my Page.