सावधान:अगर आपका बच्चा मोबाइल चलाता है,डॉक्टर साहब! रोटी की जगह जीबी खा रहा है बेटा
केस-एक
नेत्ररोग विशेषज्ञ डॉ. शशांक श्रीवास्तव के पास बच्चे को लेकर पहुंचे एक अभिभावक ने बताया कि बेटा रात को चुपके से उनका मोबाइल लेकर काफी देर तक गेम खेलता रहता है। उसे आजकल भूख-प्यास भी नहीं लगती और आजकल वह रोटी की जगह जीबी खा रहा है। वह छोटे अक्षरों को को ठीक ढंग से नहीं देख पा रहा है।
केस-दो
कृष्णानगर कॉलोनी की मनीषा का कहना है कि उनका 10 साल का बेटा मोबाइल पर काफी सक्रिय हैं। चौथी में पढ़ने वाले 10 साल के बेटे ने एक दिन स्कूल से घर पहुंचते ही दिखाई न पड़ने की शिकायत की। घरवाले उसे लेकर तत्काल डॉक्टर के यहां पहुंचे तो पता चला कि ज्यादा मोबाइल देखने के चलते उसे यह समस्या हुई।
केस 3
कृष्णानगर कालोनी की ही एक महिला ने अपने नवजात की मच्छरदानी के ऊपर दो-दो स्मार्ट फोन रखकर वीडियो दिखाना शुरू किया। ताकि वह उसे देखकर खेलता रहे। कुछ समय बाद बच्चे की आंखों में तिरछेपन की शिकायत आ गई जिसका प्राइवेट डॉक्टर के यहां इलाज चल रहा है।
अभी तक हम चीन, साउथ कोरिया और तमाम पश्चिमी देशों में ‘डिजिटल डेटॉक्स कैंप’ की कहानियां सुनते थे जहां माता-पिता अपने बच्चों को इंटरनेट की लत से छुटकारा दिलाने के लिए हजारों डॉलर खर्च कर देते हैं लेकिन अब यह समस्या हमारे दरवाजे पर खड़ी है। शहर में कई बच्चों को मोबाइल पर इंटरनेट से चिपके रहने की ऐसी लत लगी है कि उनके माता-पिता डॉक्टरों के पास दौड़ लगाने को मजबूर हैं।
माता-पिता के लिए मुश्किल हो रहा बच्चों की मोबाइल की लत छुड़ाना
बच्चों की आंख और दिमाग चट कर रहा है मोबाइल डाटा
तमाम देशों में इंटरनेट की लत छुड़ाने के लिए चल रहे हैं डिजिटल डेटॉक्स कैंप
मोबाइल, स्मार्ट फोन, सोशल मीडिया सहित सारा साइबर संसार पिछले दो दशकों में पला-बढ़ा है। आजकल बच्चों को शुरुआत से ही यह माहौल मिल रहा है तो अनजाने में ही सही वे इसके आदती होते चले जा रहे हैं। कई बार वक्त की कमी और थकान के मारे माता-पिता बच्चों को बहलाने के लिए खुद उन्हें मोबाइल या स्मार्ट फोन थमा देते हैं। नतीजा बालरूप इस मायावी मशीन के मकड़जाल में फंसता चला जा रहा है। यही वजह है कि इन दिनों जिला अस्पताल समेत कई प्राइवेट हॉस्पिटलों में बच्चों में आंख से संबंधित समस्याएं लेकर पहुंचने वाले अभिभावकों की संख्या बढ़ गई है।
पलक झपकाना भूल जाता है बच्चा
नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. शशांक के मुताबिक मोबाइल पर लगातार गेम खेलने या वीडियो देखने की वजह से बच्चे पलक झपकाना भूल जाते हैं। सामान्तया एक मिनट में 10 से 12 बार पलक झपकनी चाहिए। लेकिन मोबाइल में बच्चे इतने तल्लीन होते हैं कि पांच से सात बार ही पलक झपकने पर भी उन्हें इसका ख्याल नहीं रहता। इससे आंखों की मांसपेशियों को नुकसान पहुंचता है और सूखापन बढ़ने लगता है। ऐसे में डॉक्टर लुब्रिकेंट का सुझाव देते हैं। शुरुआत में आंखों में लाली, थकान, दर्द की शिकायत होती है लेकिन यदि सही इलाज न मिले तो आगे चलकर बच्चा हमेशा के लिए दवाइयों पर निर्भर हो सकता है। स्क्रीन से निकलने वाली किरणें आंख के साथ मस्तिष्क को भी नुकसान पहुंचाती हैं।
गोरखपुर में तेजी से बढ़ रहा मोबाइल का बाजार
गोरखपुर में बाजार के अनुमान के मुताबिक इस वक्त 10 लाख से अधिक स्मार्ट फोन इस्तेमाल हो रहे हैं। मोबाइल कारोबारी समीर के मुताबिक शहर में चार प्रमुख कम्पनियों के ढाई हजार टॉवर हैं। मोबाइल का रिटेल कारोबार 4 से 5 करोड़ रुपये का है। लगभग इतनी ही ऑनलाइन शापिंग भी होती है। बढ़ते स्मार्टफोन का असर है कि यूट्यूब, फेसबुक समेत सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्मों पर बच्चों की मौजूदगी बढ़ी है।
सावधानी से इस्तेमाल करें गैजेट्स का
शहर के नेत्र रोग विशेषज्ञों के यहां आजकल रोज सात से आठ मामले मोबाइल, कम्प्यूटर, लैपटॉप आदि की वजह से आंखों में सूखेपन, धुंधला दिखने या दर्द की शिकायत के पहुंच रहे हैं। डॉ. शशांक का कहना है कि गैजेट्स वक्त की जरूरत हैं लेकिन इनका इस्तेमाल सावधानी से करना चाहिए। माता-पिता को बहुत सतर्क रहने की जरूरत है। बच्चों को खुद का समय दें।
अपने मार्गदर्शन में कराएं होमवर्क
गोरखपुर स्कूल एसोसिएशन के अजय शाही कहते हैं कि जैसे कोई पुस्तकालय में जाकर सिर्फ अपनी अभिरुचि या आवश्यकता की पुस्तकें पढ़ता है वैसे ही इंटरनेट का भी इस्तेमाल होना चाहिए। स्कूलों से मिलने वाले होमवर्क के नाम पर बच्चा कहीं जरूरत से काफी अधिक समय इंटरनेट पर न दे इसके लिए माता-पिता को अपने मार्गदर्शन में ही इसका इस्तेमाल करने देना चाहिए।
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