सुंदरता का गणित और गणित के फार्मूले
सच के साथ/
हाल के वर्षों में यह देखा गया है कि बदलते समय के साथ सुंदरता मापने के मापदंडो में भी परिवर्तन हुआ है। ‘मिस यूनिवर्स’, ‘मिस वर्ल्ड’, ‘मिस एशिया’, ‘मिस इंडिया’ से होता हुआ सिलसिला स्थानीय स्तर तक आ पहुंचा है।

सुंदरता की वास्तविक परिभाषा क्या है? अचानक यह सवाल प्रासंगिक हो गया है, क्योंकि कुछ समय पहले तेईस वर्षीया मॉडल इसाबेला हदीद को दुनिया की सबसे सुंदर महिला घोषित किया गया है। यह जानना दिलचस्प है कि इसाबेला को गणित के फार्मूले की बदौलत यह सम्मान मिला है। अगर यह फार्मूला नहीं होता तो निश्चित रूप से इसाबेला का मनोनयन अब तक विवादों की भेंट चढ़ चुका होता। ग्रीक सभ्यता के एक प्राचीन शिल्पकार, चित्रकार, आर्किटेक्ट फीडिअस ने शिल्पकला को अविश्वसनीय ऊंचाई पर पहुंचाया था। उनके ओलम्पिया शहर में बनाए शिल्प को प्राचीन सात आश्चर्यों में शामिल किया गया है। फीडिअस ने जीवित मनुष्यों के शिल्प बनाने में प्राचीन ग्रीक गणित के सूत्रों का सहारा लिया था। फीडिअस के ही काम को आगे बढ़ाते हुए पंद्रहवी शताब्दी में इटली के लिओनार्दो दा विंची ने अपने शिल्पों और पेंटिंग्स के डायग्राम में इन्हीं सूत्रों के सहारे कई कालजयी चित्रों और डायग्राम बनाए जो आज भी आर्किटेक्ट की पढ़ाई करने वालों का मार्गदर्शन कर रहे हैं। सैंकड़ों वर्षों से इस सूत्र की मदद से सुंदर भवनों और शिल्पों का निर्माण किया जाता रहा है।
खैर, समझना यह है कि सुंदरता का गणित से क्या वास्ता? जो सुंदर है, वह बगैर किसी किंतु-परंतु के सुंदर है! इसाबेला के उदाहरण में ब्रिटिश प्लास्टिक सर्जन डॉ डी सिल्वा ने लिओनार्दो दा विंची और फीडिअस के अपनाए मानकों के आधार पर यह घोषणा की। दरअसल, मानव शरीर की बनावट में हरेक अंग को बाकी शरीर के एक अनुपात और बाकी अंगों से उसकी समरूपता को देखा जाता है। यही तत्त्व सुंदरता का निर्माण करता है और देखने वाले किसी व्यक्ति के मन में आकर्षण का भाव पैदा करता है।
हिंदी और अंग्रेजी, दोनों ही साहित्य में सुंदरता, खासतौर पर स्त्री की सुंदरता पर अनगिनत काव्य, कहानियां और शोध ग्रंथ उपलब्ध हैं। कालिदास की शकुंतला, शेक्सपियर की क्लिओपेट्रा, जायसी की पद्मावत, ग्रीक पुराणों की हेलेन आॅफ ट्रॉय, हमारे मुगल इतिहास की नूरजहां, अर्जुमंद बानो मुमताज महल, जहांआरा बेगम आदि की जादुई सुंदरता और आकर्षक व्यक्तित्व पर आज भी लिखा जा रहा है। मौजूदा दौर में दिवंगत महारानी गायत्री देवी को साठ के दशक में दुनिया की दस सुंदर महिलाओं में शामिल किया गया था।
लगभग इसी दौर में मादकता का पर्याय बनी अभिनेत्री मधुबाला के सौंदर्य ने हॉलीवुड फिल्म निमार्ताओं को उन्हें अपनी फिल्म में लेने के लिए मुंबई आने पर बाध्य कर दिया था।
लेकिन हाल के वर्षों में यह देखा गया है कि बदलते समय के साथ सुंदरता मापने के मापदंडो में भी परिवर्तन हुआ है। ‘मिस यूनिवर्स’, ‘मिस वर्ल्ड’, ‘मिस एशिया’, ‘मिस इंडिया’ से होता हुआ सिलसिला स्थानीय स्तर तक आ पहुंचा है। इन ाौंदर्य स्पर्धाओं ने न केवल बाजार को प्रभावित करना शुरू कर दिया है, बल्कि सौंदर्य प्रसाधनों का एक अलग बाजार खड़ा कर दिया है। इन्हीं स्पर्धाओं से निकली ऐश्वर्या रॉय, सुष्मिता सेन, डायना हेडन आज अपने सौंदर्य की वजह से कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियों की ब्रांड एंबेसडर बन कर अभिनय से अधिक धन कमा रही हैं।
यह इसलिए संभव हो पा रहा है कि हमारे समाज में सौंदर्य के पैमाने जिस परिभाषा में बंधे रहे हैं, लोगों का नजरिया भी उसी के मुताबिक संचालित होता रहा है। यहां यह भी गौरतलब है कि सिनेमा ने सुंदरता को देखने के नजरिये को बुरी तरह प्रभावित किया है। नायिका को स्क्रीन पर प्रस्तुत करने के दौरान जितनी सावधानी बरती जाती है और उसे जिस कृत्रिमता से संवारा जाता है, उसे कभी न कभी दर्शक ताड़ ही जाता है। फिर भी बीते दो-तीन दशकों में नैसर्गिक सौंदर्य से उपकृत रेखा, श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित, मनीषा कोइराला जैसी नायिकाएं अभिनय के अलावा अपने रूप लावण्य से भी दर्शकों को आकर्षित करती रही हैं।

कहने का आशय यह कि ‘सुंदरता देखने वाले की आंखों में होती है’, इस वाक्यांश का पहला प्रयोग ईसा से तीन शताब्दी पूर्व ग्रीक में ही हुआ था। लेकिन इसके मंतव्य के बारे में लगभग सभी साहित्यकारों, लेखकों ने अपनी व्याख्या हर काल में लिखी है। इस कथन के अनुसार मनुष्य का सौंदर्य सिर्फ स्त्री सौंदर्य पर ही सीमित रह जाना सौंदर्य भाव का अपमान है। सुंदरता कई आकार और रूपों में हमारे सामने आती है। शिल्प, कविता, संगीत, गीत, भाषा, व्यवहार, रिश्ता, प्रेम, स्वस्थ तर्क, अनुपम विचार, समाधान, जीवन, सूर्यास्त, सूर्योदय, नीले आसमान पर बंजारे बादलों का मनचाहे आकार लेना, बड़े कैनवास की तरह फैले अनंत ब्रह्मांड में सूर्य की परिक्रमा करती नन्ही धरती क्या कम सुंदर है? जन्म के समय किसी बच्चे का रुदन और उसे देख उसके माता-पिता के चेहरे पर आई मुस्कान में अप्रितम सौंदर्य छिपा है! प्रियतम के इंतजार की घड़ियां, बचपन में किसी मित्र की दी हुई भेंट, प्रशंसा के दो शब्द, पुरानी किताब से मिला सूखा गुलाब आदि भी अकल्पनीय सौंदर्य से भरे लम्हे हैं! क्षणभंगुर जीवन की सत्यता के बावजूद जीवन के प्रति अनुराग अलौकिक सौंदर्य से भरा है।

एक गणित का छात्र होने के नाते मैं गणित की सुंदरता आप लोगो के साथ साझा करना चाहता हूँ, यकीन मानिए आपने इस नजरिए से गणित को कभी नही देखा होगा
एक खास ट्रैन हुआ करती थी जो स्टेशन A से स्टेशन B तक चला करती थी। मैं पूरे ग्लोब और गूगल का निरीक्षण कर चुका हूँ लेकिन आज तक मुझे ये स्टेशन A और स्टेशन B नही मिले। वैसे कभी कभी दूसरी ट्रेन भी हुआ करती थी जो कि स्टेशन B से स्टेशन A की ओर चला करती थी । हालांकि ये बात भी पता नही चली वो कौन आदमी था जो इन ट्रैन को चलाया करता था।
इसी तरह एक ठेकेदार हुआ करता था,ये सज्जन 20 पुरुष,15 महिलाओं तथा 10 बच्चो से खेत जुतवाया करता था और हमसे पूछता था कि बताओ इसी खेत को 13 पुरुष,17 महिलाएं और 12 बच्चे कितने दिनों में जोतेंगे। आज तक ये बात समझ मे नही आई ऐसा कौन सा खेत था जिसकी जुताई कभी पूरी ही नही होती थी। और ठेकेदार तुम पर तो मैं केस करूँगा बाल मजदूरी करवाते हो।
इसी तरह एक आदमी था जिसके पास तीन नल थे।पहले वाले नल को वो 20 मिनट चलाता तो दूसरे वाले नल को 15 मिनट ।इसके बाद बहुत ही गजब का काम करता तीसरा वाला नल जो कि टँकी को खाली करता उसे खोल देता और बाद में हमसे पूछता कि बताओ टँकी कितने देर में खाली होगी ?बताओ है कोई जवाब इसका।
और कोई मुझे ये बताओ वो मोटर चालक था कौन, जो पहले घण्टे 80 किमी/घण्टे की रफ्तार से बाइक चलाता फिर 50 किमी/घण्टे की रफ्तार से बाइक चलाता। तुम मतलब हमारे मजे लेने के लिए बाइक में इधर उधर घूम रहे हो।पेट्रोल फ्री का आता है क्या? और हमसे पूछते हो कि औसत चाल बताओ?
उन्ही के बीच मे एक दूधवाला भी हुआ करता था जो कि दो छोटे कंटेनर में तीन भाग दूध और एक भाग पानी मिलाता था फिर इनको बड़े से कन्टेनर में जिसमे कि आधा दूध भरा होता था मिला देता था । फिर हमसे पूछता था कि बताओ कितना भाग दूध और कितना भाग पानी। अरे भाई ठीक है तुझे सवाल पूछना है लेकिन अपना सीक्रेट व्यापार क्यो सबको बता रहा है।
धन्यवाद
1 thought on “सुंदरता का गणित और गणित के फार्मूले”