Article 35A: आखिर क्या है अनुच्छेद 35ए, क्यों मचा है इस पर संग्राम?
जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार देने वाले आर्टिकल 35A की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में 26 फरवरी को सुनवाई होनी है। इस सुनवाई से पहले घाटी में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। यासीन मलिक जैसे नेताओं को हिरासत में लिया गया है। साथ ही गृह मंत्रालय ने भी अर्धसैनिक बलों की 100 टुकड़ियों को आकस्मिक तौर पर तैनाती के लिए रवाना कर दिया है। आर्टिकल को भेदभावपूर्ण बताते हुए दिल्ली के एनजीओ ‘वी द सिटिजन’ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इन सारी बातों के बीच में केवल एक ही बात कौंध रही है कि आखिर धारा 35A है क्या और क्यों मचा है इस पर बवाल।
दरअसल अनुच्छेद 35A जम्मू-कश्मीर की विधान सभा को स्थाई नागरिक की परिभाषा तय करने का अधिकार देता है, जिसे कि राज्य में 14 मई 1954 को लागू किया गया था। यह अनुच्छेद संविधान की किताबों में देखने को नहीं मिलता है।
धारा 35A
इस अनुच्छेद को लागू करने के लिए तत्कालीन सरकार ने धारा 370 के अंतर्गत प्राप्त शक्ति का इस्तेमाल किया था।इतिहास की माने तो इसे राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 14 मई 1954 को लागू किया था। इस आदेश के राष्ट्रपति द्वारा पारित किए जाने के बाद भारत के संविधान में इसे जोड़ दिया गया। अनुच्छेद 35A धारा 370 का हिस्सा है। इस धारा के तहत जम्मू-कश्मीर के अलावा भारत के किसी भी राज्य का नागरिक जम्मू-कश्मीर में कोई संपत्ति नहीं खरीद सकता इसके साथ ही वहां का नागरिक भी नहीं बन सकता।
धरती की जन्नत का नागरिक वो ही माना जाएगा जो कि 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या उससे पहले के 10 वर्षों से राज्य में रह रहा हो या इससे पहले या इसके दौरान वहां पहले ही संपत्ति हासिल कर रखी हो। उदाहरण के तौर पर इसके साथ ही अगर जम्मू-कश्मीर की लड़की किसी बाहरी लड़के से शादी करती है तो उसके सारे अधिकार समाप्त हो जाएंगे। इसके साथ ही उसके बच्चों को भी किसी तरह के अधिकार नहीं मिलेंगे।
क्यों हटाया जा रहा है?
इसे खत्म करने की बात इसलिए हो रही है क्योंकि इस अनुच्छेद को संसद के जरिए लागू नहीं किया गया है, दूसरा कारण ये है कि इस अनुच्छेद के ही कारण पाकिस्तान से आए शरणार्थी आज भी राज्य के मौलिक अधिकार और अपनी पहचान से वंचित हैं।
अब सवाल ये है कि यदि अनुच्छेद 35A असंवैधानिक है तो सर्वोच्च न्यायालय ने 1954 के बाद से आज तक कभी भी इसे असंवैधानिक घोषित क्यों नहीं किया? यदि यह भी मान लिया जाए कि 1954 में नेहरु सरकार ने राजनीतिक कारणों से इस अनुच्छेद को संविधान में शामिल किया था तो फिर किसी भी गैर-कांग्रेसी सरकार ने इसे समाप्त क्यों नहीं किया?