Ghulam Nabi Azad ने केवल सेकुलरिज्म की सीख नही दी, उसे जीवन में उतारा भी…

गुलाम नबी आजाद की छवि एक समावेशी नेता के तौर पर लोगों के बीच बनी रही. उन्होंने हमेशा ही कट्टरपंथ से दूरी बनाए रखी. इसी वजह से वह बहुसंख्यक वर्ग में भी काफी लोकप्रिय रहे. राजनीति का जो स्तर हम और आप आज देखते हैं, गुलान नबी आजाद ने कभी उस ओर रुख ही नहीं किया. यह बात उन्हें सबसे अलग बनाती है.
नई दिल्ली|गुलाम नबी आजाद ने अपने विदाई भाषण में जो कुछ भी कहा, उसके मायने बहुत व्यापक हैं. धर्म, जाति, विचारधारा से ऊपर उठकर एक इंसान के तौर पर इसे देखने से हमें काफी कुछ सीखने को मिल सकता है. बीते कुछ सालों में देश का माहौल काफी बदल गया है. इसके लिए निश्चित तौर पर राजनीतिक दल जिम्मेदार हैं. मुस्लिम वर्ग के अंदर पैदा हुआ भय उन्हें आगे बढ़ने से रोक रहा है. राजनीति के लगातार गिरते हुए स्तर ने इसे और बदतर बना दिया है. अपने राजनीतिक हितों को साधने के लिए तमाम पार्टियां इस डर को खत्म नहीं होने देने चाहती हैं. भारत में हमेशा से ही मुस्लिम वर्ग को एक वोटबैंक के रूप में देखा गया है. आजादी के बाद से लेकर आज तक मुस्लिम वर्ग के एक बड़े हिस्से को राजनीतिक दल अपने फायदे के लिए पिछड़ेपन की ओर धकेलते आ रहे हैं. तमाम सियासी वायदों के बावजूद इनकी स्थिति में सुधार नहीं होना, देश की राजनीति पर एक बदनुमा दाग है.
What we have witnessed in Rajya Sabha was the true spirit of Bharat.
There is nothing as profound as absolute inclusiveness, PM @narendramodi Ji has got big heart to acknowledge & embrace every good work, even from across the party line.#GulamNabiAzadpic.twitter.com/QkqJsbPtuY
— Shobha Karandlaje (@ShobhaBJP) February 10, 2021
गुलाम नबी आजाद ने अपने विदाई भाषण में कहा कि मैं उन खुशकिस्मत लोगों में से हूं जो पाकिस्तान कभी नहीं गया. वहां के जो हालात हैं, उसे देखकर हिंदुस्तान के हर मुसलमान को गर्व करना चाहिए. पाकिस्तान के समाज में जो बुराइयां हैं. हमारे मुसलमानों में वो बुराइयां, खुदा न करे कि कभी भी आएं. लेकिन, यहां के बहुसंख्यक वर्ग को भी दो कदम आगे बढ़ने की जरूरत है. तभी अल्पसंख्यक वर्ग 10 कदम आगे बढ़ेगा. हमने बीते कुछ सालों में देखा कि अफगानिस्तान से लेकर ईराक..एक-दूसरे से लड़ाई करते हुए किस तरह से मुस्लिम देश खत्म हो रहे हैं. वहां हिंदू तो नहीं हैं, वहां क्रिश्चियन नहीं हैं. वहां कोई दूसरा नहीं है, जो लड़ाई कर रहा, आपस में लड़ाई कर रहे हैं.
भारत के संविधान ने सभी को बराबर का हक दिया है. भारत जितना राम का है, उतना ही रहीम का भी है. अल्पसंख्यक वर्ग के कुछ चुनिंदा लोगों की वजह से इस पूरी कम्युनिटी पर तोहमत लगाने की आदत बहुसंख्यक वर्ग को छोड़नी होगी. दिस देश में ब्रिगेडियर उस्मान अंसारी से लेकर एपीजे अब्दुल कलाम की विरासत रही हो, वहां मुस्लिम वर्ग को लेकर बनाए गए पूर्वाग्रहों को छोड़ना ही होगा. राजनीतिक दलों को अपने ‘बयानवीर’ नेताओं पर उसी तरह रोक लगानी होगी, जैसी रोक वह ट्विटर से लगवाने की इच्छा रखते हैं. हर बात पर पाकिस्तान भेज देने की बात करने वालों को समझना होगा कि वहां के हालात यहां से भी बदतर हैं. जो लोग हमारे साथ आजादी के बाद से रह रहे हैं.
हमें उन्हें सहेजने की जरूरत है. गुलाम नबी आजाद की बहुसंख्यक वर्ग को दो कदम आगे बढ़ने वाली बात पर खास तौर से गौर करना चाहिए. आप आगे बढ़ेंगे, तभी वो भी आगे बढ़ पाएंगे. अगर हम आपस में नहीं लड़ेंगे, तो काफी कुछ सीख सकते हैं. ‘हम उनके समाज सुधारक नहीं हैं, गटर में रहना चाहते हैं, तो रहने दो’ वाली सोच से भी दूरी बना कर चलना होगा. कुल मिलाकर मेरी बात का लब्बोलुआब यही है कि सेकुलरिज्म की केवल सीख मत दीजिए, उसे जीवन में उतारिए. साथ ही दोनों ओर के कट्टरपंथियों से दूरी बनाकर रखिए.