UP Assembly By-Election 2020: उन्नाव की बांगरमऊ में 27 अक्तूबर को जनसभा करेंगे मुख्यमंत्री योगी

1962 में बनी बांगरमऊ सीट पर कभी भी भाजपा 55 साल में कमल का फूल खिलाने में कामयाब नहीं हो पाई थी। बांगरमऊ सीट पर कांग्रेस ने पांच बार जीत का परचम लहराया था तो वही समाजवादी पार्टी ने तीन व बहुजन समाज पार्टी ने दो बार बाजी मारी थी।
- बांगरमऊ सीट पर तीन नवंबर को होगा चुनाव
- 2017 के चुनाव में पहली बार इस सीट पर मिली थी भाजपा को जीत
लखनऊ |यूपी में सात सीटों पर हो रहे उपचुनाव पर भाजपा ने पूरा जोर लगा दिया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह लगातार रैलियां कर रहे हैं। इसी कड़ी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 27 अक्तूबर को बांगरमऊ में जनसभा को संबोधित करेंगे।
बता दें कि उन्नाव दुष्कर्म कांड में घिरे कुलदीप सिंह सेंगर की विधानसभा सदस्यता खत्म होने के बाद बांगरमऊ सीट खाली हुई है। सेंगर भाजपा से ही विधायक थे और दुष्कर्म कांड में नाम आने के बाद उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गई थी।
इस सीट पर भाजपा ने पूर्व जिला अध्यक्ष श्रीकांत कटियार को प्रत्याशी बनाया है। वहीं, कांग्रेस ने आरती वाजपेयी, बसपा ने महेश पाल और सपा ने सुरेश पाल को उम्मीदवार बनाया है।
बता दें कि प्रदेश में आठ विधानसभा सीटें खाली हैं जिनमें से सात पर चुनाव हो रहे हैं। मतदान तीन नवंबर को होगा और परिणाम की घोषणा 10 नवंबर को होगी।
वर्चुअल के साथ-साथ नुक्कड़ सभाओं पर भाजपा का फोकस
चुनाव हो या उपचुनाव भाजपा बड़ी संजीदगी से लड़ती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण बांगरमऊ विधानसभा सीट पर दिख रहा है। अन्य पार्टियों की अपेक्षा भाजपा ने अभी तक यहां सबसे ज्यादा सभाएं की है। फिर वह चाहे वर्चुअल रैली हो या फिर नुक्कड़ सभाएं हों। सीएम योगी भी उपचुनाव के लिए क्षेत्र के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों से संवाद कर चुके हैं। यही नहीं वहां उन्होंने जाकर करोड़ों रुपए की योजनाओं की सौगात भी क्षेत्र को दी है। जिसमें 51 परियोजनाओं का लोकार्पण हुआ तो 17 योजनाओं का शिलान्यास भी किया गया है। हालांकि विपक्षी पार्टियों के बड़े नेता इस उपचुनाव में अभी तक प्रचार करने नहीं पहुंचे हैं। प्रदेश स्तर के पदाधिकारी अपने अपने कैंडिडेट की प्रचार अभियान में लगे हुए हैं।
सेंगर समर्थक भाजपा से नाराज
बांगरमऊ के ही राघवेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं कि भाजपा ने कुलदीप सिंह सेंगर के साथ अच्छा नहीं किया।यह सभी जानते हैं कि उन्हें राजनैतिक साजिश के तहत फंसाया गया है। कोर्ट ने फैसला दिया, लेकिन भाजपा को सेंगर की पत्नी को टिकट देना चाहिए था। उनके साथ क्षेत्र की सहानुभूति थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जिसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ेगा। वहीं, मोहम्मद लईक कहते हैं कि जब तक कुलदीप सेंगर ने भाजपा का झंडा नहीं थामा था, तब तक भाजपा यहां से जीत नहीं पाई। उन्हें हर वर्ग का समर्थन हासिल था अगर उनकी पत्नी को टिकट दिया जाता तो भाजपा के जीतने की कुछ तो उम्मीद होती ही लेकिन अब वह भी खत्म हो गयी है। आपको बता दें कि कुलदीप सिंह सेंगर का माखी गांव बांगरमऊ विधानसभा में नहीं आता है।

मतदाताओं के साथ बैठक कर भाजपाई कर रहे प्रचार।
चर्चा गरम है, किसका पलड़ा भारी होगा ?
बांगरमऊ सीट पर हो रहे उपचुनाव को लेकर क्षेत्र में हर एक नुक्कड़ चौराहे पर चर्चा बेहद गर्म है। किसी चौराहे पर भाजपा और कांग्रेस की जीत पर दांव लगाए जा रहे हैं तो वही किसी अन्य चौराहे पर सपा और बसपा की जीत पर दांव लगाए जा रहे हैं। क्षेत्रीय जनता की बात सुने तो भाजपा जीत के लिए संघर्ष करती हुई नजर आ रही है तो वहीं कांग्रेस तेजी के साथ आगे बढ़ती हुई दिख रही है। लेकिन सपा और बसपा भी पीछे नहीं है। मुस्लिम मतदाताओं की अधिक संख्या होने के चलते ऊंट किस करवट बैठेगा? यह भी अभी तक कोई तय नहीं कर पा रहा है। क्षेत्र के बुजुर्ग मतदाता राधेश्याम, गोपीनाथ, कमलेश अवस्थी ने बताया कि 2017 के चुनाव में भाजपा की जीत बहुत पहले ही सुनिश्चित हो गई थी और हम लोगों ने मतदान से पहले ही कह दिया था कि इस बार भाजपा का कमल बांगरमऊ में खिल जाएगा। लेकिन इस उपचुनाव में एक बार फिर से या कह पाना बेहद मुश्किल है कि ऊंट किस करवट बैठेगा। क्योंकि भाजपा को लेकर अभी भी बांगरमऊ की जनता के बीच अच्छी खासी नाराजगी देखने को मिल रही है तो वही पूर्व गृहमंत्री गोपीनाथ दीक्षित की बेटी आरती बाजपेई क्षेत्रीय होने के साथ-साथ गांव की बेटी हैं। इसलिए 2020 के उपचुनाव में किसकी जीत होगी यह कहना मुश्किल है।
बांगरमऊ से कभी नहीं जीती कोई महिला कैंडिडेट
बांगरमऊ विधानसभा का इतिहास रहा है कि आज तक कोई भी महिला कैंडिडेट यहां से नहीं जीती है। 5 बार के चुनाव में यहां महिला कैंडिडेट खड़ी तो हुई लेकिन हर बार हार का सामना ही करना पड़ा। इस बार पूर्व गृहमंत्री गोपीनाथ दीक्षित की बेटी आरती बाजपेई को कांग्रेस ने मौका दिया है। आरती 2007 का चुनाव भी कांग्रेस के टिकट पर लड़ चुकी हैं, लेकिन जीत नहीं मिल पाई थी। 2012 में टिकट कट गया तो निर्दलीय ही चुनाव लड़ गईं, लेकिन फिर भी जीत से दूर रहीं। 2017 में चुनाव ही नहीं लड़ा था, क्योंकि कांग्रेस से सपा का गठबंधन था और सीट सपा के खाते में गयी थी। इस उपचुनाव में फिर से मौका मिला है।
55 साल में पहली बार खिला कमल और वह भी मुरझा गया
1962 में बनी बांगरमऊ सीट पर कभी भी भाजपा 55 साल में कमल का फूल खिलाने में कामयाब नहीं हो पाई थी। बांगरमऊ सीट पर कांग्रेस ने पांच बार जीत का परचम लहराया था तो वही समाजवादी पार्टी ने तीन व बहुजन समाज पार्टी ने दो बार बाजी मारी थी। बांगरमऊ सीट को अपने कब्जे में करने के लिए भाजपा ने जोड़-तोड़ की राजनीति करते हुए समाजवादी पार्टी के ठाकुर समाज से आने वाले नेता कुलदीप सिंह सेंगर को पार्टी में शामिल करते हुए 2017 में प्रत्याशी बनाया था, जिसका नतीजा जा रहा था कि 1962 के बाद से बांगरमऊ सीट पर कमल खिलाने को तरस रही भाजपा कमल खिलाने में कामयाब हो गई थी। लेकिन बांगरमऊ सीट पर कमल ज्यादा दिन तक खिला नहीं सका और कुलदीप सेंगर के ऊपर लगे आरोपों पर कोर्ट ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई है।

जनसंपर्क करते कांग्रेसी कार्यकर्ता।
क्या है जातीय समीकरण?
बाहुबली कुलदीप सिंह सेंगर की इस सीट पर निर्णायक मतदाता मुस्लिम ही हैं। जिस भी कैंडिडेट को मुस्लिम व निषाद वोट मिल गए, वह जीत का परचम लहरा देगा। बांगरमऊ सीट पर 3,38,903 वोटर हैं, जिसमें 1,85,357 पुरुष वोटर, 1,53,516 महिला वोटर व लगभग 30 थर्ड जेंडर वोटर है।
जाति | आंकड़ा |
मुस्लिम | 66000 |
निषाद | 51,000 |
दलित | 41000 |
ब्राह्मण | 40000 |
यादव | 25000 |
बाल्मीकि | 17000 |
पाल | 16000 |
कुर्मी | 13000 |
अन्य | 43903 |
किसने किस पर लगाया दांव?
बांगरमऊ विधानसभा में होने वाले उपचुनाव को लेकर भाजपा फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। जिसके चलते साफ-सुथरी छवि वाले श्रीकांत कटियार को प्रत्याशी बनाया है, जिनके ऊपर कोई भी आपराधिक मामला नहीं चल रहा है। वहीं, कांग्रेस ने भी जातीय गणित को ध्यान में रखते हुए पूर्व गृहमंत्री गोपीनाथ दीक्षित की बेटी आरती बाजपेई को मैदान में उतारा है। जहां आरती बाजपेई को राजनैतिक विरासत परिवार से मिली है। वहीं उनका भी राजनैतिक सफर उन्नाव में बहुत बड़ा रहा है। वहीं, समाजवादी पार्टी ने अपने पार्टी के कद्दावर नेता सुरेश पाल को मैदान में उतारा है। जहां एक और सुरेश पाल उन्नाव के अंदर चर्चित चेहरा है तो वहीं सुरेश पाल के ऊपर कई मुकदमे कोर्ट में विचाराधीन भी हैं। इसी के साथ बहुजन समाज पार्टी ने जातिगत गणित को ध्यान में रखते हुए साफ-सुथरी छवि के प्रत्याशी पर दांव लगाया है और अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेता महेश पाल को बांगरमऊ से प्रत्याशी बनाया है।
पार्टी | उम्मीदवार |
भाजपा | श्रीकांत कटियार |
सपा | सुरेश पाल |
बसपा | महेश पाल |
कांग्रेस | आरती बाजपेई |
कौन कौन कब कितनी बार जीता?
बांगरमऊ सीट पर कभी कांग्रेस का कब्जा हुआ करता था। 1962 में गठित हुई इस सीट पर पहली बार कांग्रेस ने ही अपना झंडा लहराया था। यह सिलसिला 1991 तक चला। गोपीनाथ दीक्षित लगातार 4 बार इस सीट से विधायक बने। यही नहीं, वह पूर्व गृहमंत्री भी रहे। लेकिन कमजोर संगठन के चलते 1993 में यह सीट सपा के खाते में चली गयी। 1996 से 2002 तक बसपा के खाते में यह सीट रही। फिर 2007 से 2017 तक सपा का झंडा लहराया। 2017 में भाजपा के लिए जीत की मुहर इस सीट पर सपा बसपा घूम चुके कुलदीप सिंह सेंगर ने लगाया था।
पार्टी | कितनी बार हुई जीत |
भाजपा | 01 |
सपा | 03 |
बसपा | 02 |
कांग्रेस | 05 |